SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 561
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९४ भगवती आराधना पश्चादुपन्यस्तः । स्वातन्त्र्यविशिष्टेन आत्मना यत् क्रियते तत कृतं । परस्य प्रयोगमपेक्ष्य सिद्धिमुपयाति यत्तत्कारितं । स्वयं न करोति न च कारयति, किन्त्वभ्युपैति यत्तदनुमननं अभ्युपगमः । तत्र संरंभस्तावदुच्यते क्रोधनिमित्तं स्वतन्त्रस्य हिंसाविषयः प्रयत्नावेशः क्रोधकृतकायसंरम्भः । मानकृतकायसंरम्भः, मायाकृतकायसंरम्भः, लोभकृतकायसंरम्भः । क्रोधकारितकायसंरम्भः, मानकारितकायसंरम्भः मायाकारितकायसंरम्भः, लोभकारितकायसंरम्भः । क्रोधानुमतकायसंरम्भः, मानानुमतकायसंरम्भः, मायानुमतकायसंरम्भः, लोभानुमतकायसंरम्भः । इति द्वादशधा संरम्भः । क्रोधकृतकायसमारम्भः, मानकृतकायसमारम्भः, मायाकृतकायसमारम्भः, लोभकृतकायसमारम्भः। क्रोधकारितकायसमारम्भः, मानकारितकायसमारम्भः । मायाकारितकायसमारम्भः, लोभकारितकायसमारम्भः । क्रोधानुमतकायसमारम्भः, मानानुमतकायसमारम्भः, मायानुमतकायसमारम्भः, लोभानुमत कायसमारम्भः इति द्वादशधा समारम्भः । क्रोधकृतकायारम्भः, मानकृतकायारम्भः, मायाकृतकायारम्भः, लोभकृतकायारम्भः। क्रोधकारितकायारम्भः मानकारितकायारम्भः, मायाकारितकायारम्भः, लोभकारितकायारम्भः। क्रोधानुमतकायारम्भः, मानानुमतकायारम्भः, मायानुमतकायारम्भः, लोभानुमतकायारम्भश्च । इत्येवं आरम्भोऽपि द्वादशधा । एवं संविदिताः कायारम्भाः षट्त्रिंशत् । एते सपिण्डिताः जीवाधिकरणास्रवभेदा अष्टोत्तरशतसंख्या भवन्ति ॥८०५॥ संरंभो संकप्पो परिदावकदो हवे समारंभो । आरंभो उद्दवओ सव्ववयाणं विसुद्धाणं ।।८०६।। स्वतन्त्रता पूर्वक जो किया जाता है वह कृत है। जो दूसरेके द्वारा सिद्ध होता है वह कारित है। न स्वयं करता है न कराता है किन्तु जो करता है उसे स्वीकार करता है वह अनुमत है। इनमेंसे संरम्भके भेद कहते हैं क्रोधके निमित्तसे स्वतन्त्रता पूर्वक हिंसा विषयक प्रयत्न करना क्रोध कृत काय संरम्भ है । इसी तरह मान कृत काय संरम्भ, मायाकृत काय संरम्भ, लोभकृत काय संरम्भ, क्रोध कारित काय संरम्भ. मान कारित काय संरम्भ. माया कारित काय संरम्भ, लोभ कारित काय संरम्भ । क्रोधानुमत काय संरम्भ, मानानुमत काय संरम्भ, मायानुमत काय संरभ, लोभानुमत काय संरम्भ इस तरह बारह प्रकारका संरम्भ है । क्रोधकृत काय समारम्भ, मानकृत काय समारम्भ, मायाकृत काय समारम्भ, लोभ कृत काय समारम्भ । क्रोध कारित काय समारम्भ, मान कारित काय समारम्भ, माया कारित काय समारम्भ, लोभ कारित काय समारम्भ । क्रोधानुमत काय समारम्भ, मानानुमत काय समारम्भ, मायानुमत काय समारम्भ, लोभानुमत काय समारम्भ | इस तरह बारह प्रकारका समारम्भ है । क्रोधकृत काय आरम्भ, मानकृत काय आरम्भ, मायाकृत काय आरम्भ, लोभकृत काय आरम्भ, क्रोध कारित काय आरम्भ, मान कारित काय आरम्भ, माया कारित काय आरम्भ, लोभ कारित काय आरम्भ, क्रोधानुमत काय आरम्भ, मानानुमत काय आरम्भ, मायानुमत काय आरम्भ, लोभानुमत काय आरम्भ । इस प्रकार आरम्भ भी बारह प्रकारका है। ये मिलकर कायारम्भके छत्तीस भेद होते हैं। छत्तीस ही भेद वचन सम्बन्धी आरम्भके और छत्तीस ही भेद मन सम्बन्धी आरम्भके होते हैं। ये सब मिलकर जीवाधिकरण सम्बन्धी आस्रवके एक सौ आठ भेद होते हैं ।।८०५।। गा०-संकल्पको संरम्भ कहते हैं। संताप देनेको समारम्भ कहते हैं और आरम्भ सब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy