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________________ विजयोदया टोका परितावणादि इत्येतत्सूत्रपदं अन्यथा व्याचष्टे रोगादंकादीहिं य सगणे परिदावणादिपत्तेसु । गणिणो हवेज्ज दुक्खं असमाही वा सिणेहो वा ॥३९३॥ 'रोगातकादीहिं य' अल्पैर्महद्भिाध्यादिभिः । 'परिदावणादिपत्तेसु' परितापनादिप्राप्तेषु । 'सगणे' आत्मीयशिष्यवर्गे । 'गणिणो हवेज्ज दु:क्सा' आचार्यस्य भवेदुःखं । 'असमाही वा सिणेहो वा' असमाधिर्वा स्नेहो वा ॥३९३॥ तण्हादिएसु सहणिज्जेसु वि सगणम्मिणिब्भओ संतो। जाएज्ज व सेएज्ज व अकप्पिदं कि पि वीसत्थो ॥३९४॥ 'तण्हादिएसु सहणिज्जेसु वि' पिपासादिकेषु परीषहेषु सहनीयेष्वपि । 'सगणम्मि णिन्भओ संतो' स्वगणे निर्भयः सन । 'जाएज्ज व सेवज्ज व' याचते वा सेवते वा । 'अकप्पियं' अयोग्यं किञ्चित्प्रत्याख्यातमशनं पानं वा। 'वीसत्थो' विश्वस्तः भयलज्जाविरहितः ॥३९४|| सिणेह इत्यस्य व्याख्या उढ्ढे सअंकवदिढय बाले अज्जाउ तह अणाहाओ । पासंतस्स सिणेही हवेज्ज अच्चंतियविओगे ॥३९५॥ उड्ढे सअंकड्ढिय इत्यादिका वृद्धान्यतीन्स्वांकद्धितबालान् यतींस्तथा आयिकाः, अनाथाः पश्यतः स्नेहो भवेदात्यन्तिके वियोगे ॥३९५॥ कोलुगिण इत्येतद्व्याचष्टे खड्डा य खड्डियाओ अज्जाओ वि य करेज्ज कोलणियं । तो होज्ज ज्झाणविग्यो असमाधी वा गणधरस्स ॥३९६॥ 'परितावणादि' इस गाथा पदको दूसरे प्रकारसे कहते हैं गा०-अपने शिष्य वर्गके छोटी बड़ी व्याधियोंसे पीड़ित होने पर आचार्यको दुःख हो सकता है । अथवा स्नेह पैदा हो सकता है और उससे समाधिकी हानि हो सकती है ।।३९३॥ . गा०-अपने गणमें रहकर समाधि करने पर प्यास आदि की परीषह सहने योग्य होने पर भी निर्भय होकर और भय तथा लज्जा को त्याग अयोग्य की भी याचना अथवा सकता। जो त्याग दिया है खानपान, उसको भी मांग सकता है या उसका सेवन कर सकता है, क्योंकि वहाँ उसे कोई भय नहीं है सब उसीके शिष्यगण हैं ॥३९४।। स्नेह का कथन करते हैं गा०-वृद्ध यतियोंको, जिन्हें बचपनसे अपनी गोदमें बैठाकर पाला है उन बाल यतियोको, आर्यिकाओंको अनाथ होते देखकर मरते समय सर्वदाके लिए वियोग होने पर स्नेह पैदा हो सकता है ॥३९५॥ 'कोलुगिण' पदका व्याख्या न करते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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