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________________ २२६ भगवती आराधना 'तवभावणा' तपसोऽभ्यासः । 'सुदभावणा' ज्ञानस्य भावना । 'सत्तभावणा' अभीरुत्वभावना । 'एगत्तभावणा' एकत्वभावना। 'धिविबलविभाविणावि ' धतिवलभावना चेति । 'असंकिलिष्ठावि पंचविधा' असंक्लिष्टा भावनाः पञ्चप्रकाराः । ननु च ताः पञ्चभावनास्तत्र किमुच्यते 'छट्ठी य भावणा चेति' असंक्लिष्टभावनात्वसामान्यापेक्षया एकतामारोप्य षष्ठीत्युच्यते । विशेषरूपापेक्षया तपोभावनादिविवेकः । अत एव सूत्रकारोऽपि एकतां दर्शयति असंक्किलिट्ठा वि पंचविहा' इति ॥१८९।। तपोभावना समाधेः कथमुपाय इत्यत्राचष्टे तवभावणाए पंचेंदियाणि दंताणि तस्स वसमेंति । इंदियजोगायरिओ समाधिकरणाणि सो कुणइ ॥१९०।। 'तवभावणाए' तपोभावनया असकृदशनत्यागेन द्रव्यभावरूपेण । 'पंचेंदियाणि' पञ्चापि इन्द्रियाणि । 'तस्स' तपोभावनारतस्य । 'वसमेंति' वशमपयान्ति । 'यतो' यस्मात, 'दंताणि' दान्तानि निगहीतदणि । इंदिययोगायरिओ' इन्द्रियाणां शिक्षाविधाय्याचार्योऽसौ । 'समाधिकरणानि' रत्नत्रयसमाधानक्रियाः । 'सो' सः, 'कुगइ' करोति । एतदुक्तं भवति । दान्तानि इन्द्रियाणि तपसा न कामरागमस्यानयन्ति । क्षुधादिभिरुपद्रुतात्मा न वामलोचनासुरतक्रीडादौ करोत्यादरमिति प्रतीतमेव । ननु चाननादी प्रवृत्तस्याहारदर्शने तद्वार्ताश्रवणे तदासेवायां चादरो नितान्तं प्रवर्तते ततोऽयुक्तमुच्यते तपोभावनयां दान्तानीन्द्रियाणीति । इन्द्रियविषय गा०-असंक्लिष्ट अर्थात् संक्लेशरहित भावना भी पाँच प्रकारकी है-तप भावना, श्रुतभावना, सत्त्व भावना, एकत्वभावना और धृतिबल भावना ॥१८९।। टी०-तपका अभ्यास तप भावना है। ज्ञानकी भावना श्रुतभावना है। निर्भयताकी भावना सत्त्व भावना है । एकत्व भावना और धृतिबल भावना ये पाँच असंक्लिष्ट भावना हैं। शंका-ये तो पाँच भावना हैं तब छठी भावना कैसे कहा ? समाधान-असंक्लिष्ट भावनापना इन सबमें समान है, इस अपेक्षा इनमें एकत्वका आरोप करके छठी भावना कहा है। विशेषकी अपेक्षा तपो भावना आदि भेद होता है। इसीसे ग्रन्थकार भी 'असंकिलिट्ठा वि पंचविहा' लिखक र एकताको बतलाते हैं ।।१८९।। तपभावना समाधिका उपाय कैसे है यह कहते हैं गा० द्रव्य और भावरूप तपकी भावनासे पाँचों इन्द्रियाँ दमित होकर उस तप भावनावालेके वशमें हो जाती हैं। इन्द्रियोंको शिक्षा देनेवाला वह आचार्य रत्नत्रयका समाधान करनेवाली क्रियाएँ करता है ।।१९०॥ टी०—इसका भाव यह है कि तपसे दमित इन्द्रियाँ साधुमें कामराग उत्पन्न नहीं करतीं। जो भूख आदिसे पीड़ित है वह स्त्रीके साथ रतिक्रीडा आदि करने में रुचि नहीं रखता यह प्रसिद्ध ही है। शङ्का-जो उपवास आदि करता है उसका आहारके देखने में, आहारकी चर्चा सुनने में और उसके सेवनमें अत्यन्त आदर होता ही है। अतः यह कहना अयुक्त है कि तप भावनासे इन्द्रियाँ दमित होती हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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