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________________ १६० भगवती आराधना स्वपरविषयाम्यां दूषयन्वर्तमानं चासंयमं कृतं क्रियमाणासंयमसदृशं न करिष्यामि इति मनसि कुर्वन्प्रत्याख्याता भवति । ___ अगारिणां विरतिपरिणामविकल्पो निरूप्यते । स्थूलकृतप्राणातिपातादिकं कृतकारितानुमतविकल्पात् त्रिविधं मनोवाक्कायविकल्पैर्न त्यजति । मनसा स्थूलकृतप्राणातिपातादिकं न करोमि, तथा वचसा कायेनेति त्रिविधं कृतम् । मनसा स्थूलकृतं प्राणातिपातादिकं न कारयामि तथा वचसा कायेन चेति त्रिविकल्पं कारितं । तथा मनसा स्थूलकृतप्राणातिपातादिकं नानुजानामि, तथा वचसा कायेन चेति विभेदमनुमननं । एवं नवविधं स्थूलकृतप्राणवधादिकं त्यक्तुमशक्तोऽगारी। । तथा मनोवाग्भ्यां स्थूलकृतप्राणातिपातादिकं कृतकारितानुमतिविकल्पात्रिविधं व कतु मशक्तो मनसा न करोमि, न कारयामि, नानुजानामि । वचसा न करोमि, न कारयामि नानुजानामि इति । कायेन कृतकारितानुमतविकल्पान् हिंसादींश्च न समर्थो विहातु । तथा च सूत्रं 'न खु तिविधं तिविधेण य दुविधेक्कविधेण वापि विरमेज्ज इति ॥' [ ] कथं तहगारी विरतिमुपैति ? अत्रोच्यते कृतकारितविकल्पाद्विप्रकारं हिंसादिकं मनोवाक्कायस्त्यजति । वाचा कायेन वा हिंसादिविषयं कृतकारितं त्यजति । कायेन एकेन वा कृतं कारितं त्यजति । अत एवोक्तं 'दुविधं पुण तिविधेण य दुविधेकविधेण वा विरमेज्ज' इति । अथवा हिंसायाः स्वयं करणं एक मनोवाक्कायैस्त्यजति । नाहं मनसा वाचा कायेन स्थूलकृतप्राणातिपातादिकं पंचकं करोमीति अभिसंधिपूर्वकं विरमणं आदिमें प्रवर्तन करने वाला बचन वोला,' इस प्रकार स्व और परविषयक निन्दा गहकेि द्वारा दोषयुक्त बतलाते हुए, तथा वर्तमानमें मैं जो असंयम करता हूँ और पूर्वमें जैसा असंयम किया है वैसा मैं भविष्यमें नहीं करूंगा, ऐसा मनमें संकल्प करके त्याग करता है। अब गृहस्थोंके विरतिरूप परिणामोंके भेद कहते हैं—कृत, कारित और अनुमतके भेदसे तीन भेदरूप स्थूल हिंसा आदिको ग्रहस्थ मन वचन कायसे नहीं त्यागता है। मनसे स्थूल हिंसा आदिको नहीं करता हूँ तथा वचनसे और कायसे नहीं करता हूँ, ये तीन भेद कृत हैं। मनसे स्थूल हिंसा आदिको न कराता हूँ तथा वचनसे और कायसे नहीं कराता हूँ। ये तीन भेद कारितके हैं । तथा मनसे स्थूल हिंसा आदिमें अनुमति नहीं देता हूँ तथा वचनसे और कायसे अनुमति नहीं देता हूँ ये तीन भेद अनुमतके हैं। इस प्रकार नौ प्रकारकी स्थूल हिंसा आदिका त्याग करने में गृहस्थ असमर्थ होता हैं । तथा कृत कारित अनुमतके भेदसे तीन भेदरूप स्थूल हिंसा आदिको मन और वचनसे करने में असमर्थ होता है । मनसे न करता हूँ, न कराता हूँ और न अनुमति देता हूँ। वचनसे न करता हूँ, न कराता हूँ और न अनुमति देता हूँ। कायसे कृत कारित अनुमतरूप हिंसा आदिको छोड़नेमें समर्थ नहीं हूँ। सूत्रमें कहा है-कृतकारित अनुमतके भेदसे तीन भेद रूप हिंसा आदिको मन वचन कायसे अथवा मन वचनसे अथवा कायसे त्याग नहीं करता है। तब गृहस्थ कैसे त्याग करता है यह बतलाते हैं कृत और कारितके भेदसे दो भेदरूप हिंसा आदिको मन वचन कायसे छोड़ता है। कृत कारित रूप हिंसादिको वचन और कायसे छोड़ता है। अथवा कृत कारित रूप हिंसा आदिको एक कायसे छोड़ता है । इसीसे कहा है-'कृत कारित रूप हिंसा आदिको तीन रूपसे, दो रूपसे या एक रूपसे छोड़ता है।' अथवा हिंसाके एक स्वयं करनेको मन वचन कायसे त्यागता है । 'मैं मनसे वचनसे कायसे स्थूल हिंसादि पाँच पापोंको नहीं करता हूँ' इस प्रकार संकल्प पूर्वक त्याग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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