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________________ प्रस्तावना रतनलालजी कटारियासे पत्रव्यवहार द्वारा इस प्रतिके पाठादि प्राप्त होते थे। किन्तु अजमेर में हमें यह प्रति कुछ समयके लिए प्राप्त हो गयी थी। _इसकी पत्र संख्या ३७९ है । प्रत्येक पृष्ठमें पन्द्रह पंक्तियाँ और प्रत्येक पंक्तिमें छत्तीस अक्षर है । गाथा संख्या २१४८ है लेख अशुद्ध है । यथा-सम्यक्के स्थानमें प्रायः सस्यक् लिखा है इसका लेखनकाल सम्वत् १९९९ है । यथा ___ अथ संवत्सरे १९९९ वर्षे मासानां मासोत्तममासे कार्तिकमासे शुक्लपक्षे तिथौ ५ बुधवासरे लिपीकृतं महात्मा गुमानरावदेव गांव वास्तव्यं । शुभंभूयात् ।' . ___ अजमेर में ही हमें भट्टारकजीके मन्दिरके भण्डारसे एक प्रति सेठ भागचन्दजी सोनी तथा पं० सुजानमलजी सोनीके प्रयत्नसे जिस किसी तरह कुछ समयके लिए प्राप्त हो सकी थी। उसमें मूलगाथाके ऊपर उसके संस्कृत शब्द भी लिखे हैं । इसकी पत्र संख्या २८१ है। यह प्रति सम्वत् १९११ की सालमें सेठ जवाहरमलजीके पुत्र मूलचन्दजी सोनीकी माताने भट्टारक रत्नभूषणजीको दी थी। इसमें गाथा संख्या २१६२ है । ___ ज-प्रति---यह प्रति भी आमेर शास्त्र भण्डार जयपुर की है। इसका नम्बर ७७८ है । प्रत्येक पत्रमें पंक्तियां प्रायः १४ हैं, किसी पत्रमें १३ और किसीमें १५ है। प्रत्येक पंक्तिमें ४१ से ४४ तक अक्षर है। आमेर शास्त्रभण्डारकी ही 'अ' प्रतिसे प्रायः एकरूपता है। किन्तु लिपि न वैसी सुन्दर है और न सुस्पष्ट । प्रतिके अन्तमें लेखनकाल सं० १५१४ दिया है । अन्तिम लेखक प्रशस्ति इस प्रकार है सम्वत् १५२१ वर्षे आषाढ वदी १३ बुधदिने गोपाल शुभस्थाने श्रीमूलसंधे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्रीवादिराज श्रीप्रभाचन्द्रदेवा तत्पट्टे भट्टारक श्री शुभचन्द्रदेवाः तत्प? श्रीजिनचन्द्रदेवा तसिक्षणी क्षुल्लिकी बाई धात्री मात्रा सुनषत लिषापितं इदं पुस्तकं ज्ञानावरणीकर्मक्षय निमित्तं । ज्ञान वा (न) ज्ञानदानेन नृभयो (निर्भयो) भयदानतः । अन्नदाता सुखी नित्यं न व्याधी भेषजा(-त्) भवेत् । यावज्जिनस्य धर्मोऽयं लोको स्थिति दयापरा। यावत्सुरनदीवाह तावन्नंदतु पुस्तकं । इसमें गाथा सं० २१४८ है। पृ० १९१ से २३१ तक नहीं हैं। पिण्डो उवधि सेज्जाए आदि गाथा ६०६ तक है । फिर 'कामाउरो णरो पुण' आदि गा० ८७७ से प्रारम्भ होता है । भगवती आराधनाकी ऐसी कोई प्रति नहीं मिल सकी जिसमें केवल मूलगाथाएँ ही हों। जितनी भी प्रतियाँ उपलब्ध हईं वे सब विजयोदया टीकाके साथ ही उपलब्ध हई। और उनमें ऐसी भी अनेक गाथाएँ सम्मिलित हैं जिनपर विजयोदया टोका नहीं है। पं० आशाधरजीने तो अपने मूलाराधना दर्पण नामक टीकामें ऐसी गाथाओंके सम्बन्धमें प्रायः यह लिख दिया है कि विजयोदयाका कर्ता इस गाथाको मान्य नहीं करता। विजयोदयाके अध्ययनसे प्रकट होता है कि उनके सामने टोका लिखते समय जो मूल ग्रन्थ उपस्थित था, उसमें और वर्तमान में उपलब्ध मूलमें अन्तर है। अनेक गाथाओंमें वे शब्द नहीं मिलते जिनकी व्याख्या टीकामें है। अतः ग्रन्थके मूल पाठका संशोधन प्रायः तब तक संभव नहीं है जब तक केवल मूल ग्रन्थका पाठ उपलब्ध न हो। इसीसे डा० ए० एन० उपाध्येके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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