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________________ २८२ Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature ५. सव्रकृन् के स्थान पर सकृत् होना चाहिए । जहाँ अशुद्ध पाठ है वहाँ पाठशुद्धि की है । कुछ स्थानों पर वर्णलोप भी मिलता है । 'आतिथ्य' शब्द में 'आ' का लोप है 1 वर्णलोपवाले शब्दों के वर्ण पास में कोष्ठक में दिए हैं । कर्ता : संस्कृत में स्वतन्त्र रचना के रूप में अज्ञातकर्ता की तीन कृतियों का उल्लेख है, जिसमें से एक इसके होने की संभावना है । कथासार : - तीर्थों के माहात्म्य को आधार बनाकर अनेक कथाकोषों एवं स्वतंत्र काव्यों का निर्माण किया गया है। जिसमें सबसे प्राचीन धनेश्वरसूरि का शत्रुजयमाहात्म्य है, इसको रैवताचल माहात्म्य भी कहते है। इसके दसवें अध्याय में भीमसेन के संबंध में, जिस कथा का उल्लेख है वह महाभारत के भीम से अलग ही है और वह इस प्रकार है : जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में श्रावस्ती नाम की नगरी थी। जिसमें 'वज्रसेन' नाम का राजा राज्य करता था । वह परम जिनभक्त था । राजा के सभी गुणों की गणना में वह श्रेष्ठ था । उसके सुभद्रा नाम की पत्नी थी । सुभद्रा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम 'भीमसेन' रखा गया । भीमसेन माता-पिता एवं गुरु से द्वेष करता था । भीमसेन के युवान होने पर पिता ने उसको युवराज पद दे दिया । युवराज पद को प्राप्त कर वह राज्य की स्त्रियाँ एवं प्रजा को सताने लगा । भीमसेन से त्रस्त प्रजा ने राजा से शिकायत की । प्रजा की बात को सुन राजा ने भीमसेन को कारावास में डाल दिया । कुछ समय के बाद जब वह कारावास से निकला तो उसने अपने पिता और मित्रों को मार डाला और मद्यादि व्यसनों का सेवन करने लगा । जिसके कारण उसको देश से निष्कासित कर दिया गया । एक गाँव से दूसरे गाँव घूमता हुआ वह एक दिन मगधदेश के पृथ्वीपुर नाम के गाँव में पहुँचा । लोग उसको मारते और हैरान करते थे । पृथ्वीपुर में वह एक माली के घर में रहने लगा । माली के घर भी वह पत्र, पुष्प और फलों की चोरी करता और बेच देता था । माली को उसके चौर्यकर्म की जानकारी हुई तो उसको निकला दिया । वहाँ से निकलने के बाद वह एक श्रेष्ठि के घर में रहने लगा । श्रेष्ठि को भी उसके चौर्यकर्म की जानकारी हुई तो उसने भी निकाल दिया । उसके बाद वह ईश्वरदत्त के साथ नाव में बैठकर जलमार्ग की ओर चला । समुद्रमार्ग से जाते हुए उसकी नाव परवाल के खडक के साथ टकसी । प्रयत्न करने पर भी नाव थोडी सी भी बाहर नहीं निकली । जिससे भीमसेन ने पंच परमेष्ठि को नमस्कार किया । ऐसी अवस्था में एक तोते ने उसको बचने का उपाय बताया । उपाय में किसी एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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