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निर्भयभीमव्यायोग का साहित्यिक अध्ययन
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सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाता है ।
इसी अन्तराल में वही ब्राह्मण नवयुवक अपनी माता तथा वधू सहित पुनः वहाँ आ जाता है । वह अपने स्वजनों सहित भीम के प्रति अत्यधिक कृतज्ञता प्रकट करता है और उसीके द्वारा उच्चारित भरतवाक्य से नाटक समाप्त होता है । कथावस्तु का मूलस्रोत एवं परिवर्तन : -
इस रूपक का मूलस्रोत महाभारत का बकवधपर्व है । कवि ने मूलाख्यान को संक्षिप्त कर उसे व्यायोग का स्वरूप दिया है । अतः महाभारत के उपाख्यान एवं रूपक के कथानक में कतिपय अन्तर दिखाई देता है, जो इस प्रकार है ।
महाभारत में बकासुर वध की घटना द्रौपदी के विवाह से पूर्व घटित होती हैं, जबकि नाटक में द्रौपदी इस घटना के समय उपस्थित है । महाभारत में ब्राह्मण के घर में आर्तनाद सुनकर कुन्ती ब्राह्मण परिवार की रक्षा के लिए भीमसेन को बकवध के लिए प्रेरित करती है । भीम को राक्षस-वध के लिए भेजने से पहले वह युधिष्ठिर से मन्त्रणा कर लेती है लेकिन नाटक में इस घटना के प्रसंग में कुन्ती का नामोल्लेख भी प्राप्त नहीं होता और युधिष्ठिर को भी भीम के इस कृत्य का कोई पूर्वज्ञान नहीं है ।। . मूल कथा में भीम माता के कथनानुसार बक राक्षस के वध के लिए ही वन में जाता है । इस प्रकार वह अपने कार्य से अनभिज्ञ है, परन्तु नाटक में भावी घटना से सर्वथा अनभिज्ञ भीम पत्नी के साथ भ्रमण के लिए वन में जाता है । वन में मांस-मज्जादि के ढेर को देखने देखने पर भीम द्वारा उनका कारण जानने की उत्सुकता प्रदर्शित कर नाटककार ने नाटक के प्रारम्भ को स्वाभाविक बनाया है । बकवध के सन्दर्भ में महाभारत में ब्राह्मण, उसकी पत्नी, पुत्र और पुत्री का प्रसंग प्राप्त होता है । लेकिन नाटक में ब्राह्मणकुमार, उसकी वृद्धा माता तथा पत्नी की कथा निबद्ध है ! सकर तथा व्याघ्र नामक दो राक्षसों द्वारा द्रौपदी को ढंढ निकालने के नाटक में वर्णित प्रसंग का मूल कथानक में उल्लेख नहीं है 1 महाभारत में द्रौपदी इस घटना के समय उपस्थित ही नहीं है । अतः उससे सम्बन्धित प्रसंग कवि की मौलिक कल्पना का परिणाम है ।
इस प्रकार कवि ने अपनी नाट्यप्रतिभा से महाभारत के विस्तृत कथानक को संक्षिप्त एवं कुछ परिवर्तित कर उसे रोचक ढंग से व्यायोग के रूप में उपस्थित किया है ।
विश्लेषण :- रूपक का प्रारम्भ नमस्कारात्मक नान्दी से होता है ।१० नान्दी के पश्चात सूत्रधार कवि एवं उसकी कृति के नामोल्लेख के साथ कवि के नाट्य-कौशल की सूचना देता है । प्रसादगुण तथा भारतीवृत्तियुक्त प्ररोचना अत्यन्त संक्षिप्त है । और कवि शीघ्र ही मुख्य पात्रों को प्रेक्षक के समक्ष लाना चाहता है । निर्भयभीमव्यायोग के अभिनय का आदेश देते ही नेपथ्य से आ रही आवाज को वह भीमभूमिकावाही कुशीलव का स्वर बताते हुए अपने कार्यानुष्ठान के लिए रङ्गमञ्च से चला जाता है तदुपरान्त भीम और द्रौपदी प्रविष्ट होते हैं । इस प्रकार सूत्रधार के संकेत के साथ ही पात्र भीम का प्रवेश होने के कारण यहाँ प्रयोगातिशय आमुख-भेद है ।
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