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________________ १६२ Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature नियुक्तियाँ थीं । चिरंतन एवं पुरातन विशेषण प्राचीनता का द्योतक है अतः यह भी भद्रबाहु प्रथम का संकेत देता है । ऐसा संभव लगता है कि नाम साम्य के कारण दोनों भद्रबाहु में अंतर स्पष्ट नहीं हो सका । ५. दशवकालिक के प्रथम अध्ययन की नियुक्ति की अंतिम गाथा (१२४) में कहा है कि दुमपुष्पिका की संक्षिप्त नियुक्ति और (विभाषा) भाष्य वर्णित किया गया है। जिन और (सर्वाक्षरसन्निपातलब्धि से युक्त) चतुर्दशपूर्वी विस्तार से इसका अर्थ कथन करते हैं । इस गाथा की अनुप्रेक्षा करने से यह स्पष्ट है कि गाथा के पूर्वार्द्ध में 'निज्जुत्तिसमासो' और 'विभासा' इन दो शब्दों का प्रयोग हुआ है । य च का वाचक है अतः यह विभासा को नियुक्ति से अलग करता है । यहाँ विभासा शब्द भाष्य का वाचक है । ऐसा अधिक संभव लगता है कि प्रथम अध्ययन की नियुक्ति का विस्तार और भाष्य द्वितीय भद्रबाहु द्वारा लिखा गया है । चूर्णि में प्रथम अध्ययन की केवल ५५ गाथाएँ ही हैं जबकि टीका में लगभग १५१ गाथाएँ हैं । इस गाथा से स्पष्ट है कि भद्रबाहु द्वितीय ने ही भद्रबाहु प्रथम की रचना की संक्षेप में व्याख्या एवं भाष्य किया ६. भद्रबाहु प्रथम की रचना को ही भद्रबाहु द्वितीय ने विस्तार दिया इस तर्क के समर्थन में यह हेतु भी विद्वानों को कुछ सोचने को मजबूर करता है । आचारांगनियुक्ति की अंतिम तीन गाथाओं के बारे में चूर्णि में कोई संकेत या व्याख्या नहीं है । आचारांगनियुक्ति गा० ३६६ में उल्लेख है कि 'पंचमचूलनिसीहं तस्स य उवरि भणीहामि' इसमें निशीथनियुक्ति लिखने की प्रतिज्ञा का संकेत है । आवश्यकनियुक्ति में जहाँ नियुक्ति कथन की प्रतिज्ञा है वहाँ निशीथनियुक्ति का उल्लेख नहीं है । अधिक संभव लगता है कि अंतिम तीन गाथाएँ भद्रबाहु द्वितीय द्वारा निर्मित हों तथा निशीथनियुक्ति लिखने का संकल्प भी उन्होंने किया हो । निशीथनियुक्ति की रचना शैली अन्य नियुक्तियों से बिल्कुल भिन्न है । अत: बहुत संभव है कि यह भद्रबाहु द्वितीय द्वारा लिखी गयी हो । ७. मुनि श्री पुण्यविजयजी ने अनेक प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि उपलब्ध नियुक्तियों के कर्ता भद्रबाहु प्रथम नहीं अपितु प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् वराहमिहिर के भाई द्वितीय भद्रबाहु हैं ।२२ फिर भी वे इस बात को स्वीकार करते हैं कि जब मैं यह कहता हूँ कि उपलब्ध नियुक्तियाँ द्वितीय भद्रबाहु की हैं, श्रुतकेवली भद्रबाहु की नहीं तब इसका तात्पर्य यह नहीं कि श्रुतकेवली भद्रबाहु ने नियुक्तियाँ लिखी नहीं । मेरा तात्पर्य केवल इतना ही है कि जिस अंतिम संकलन के रूप में आज हमारे समक्ष नियुक्तियाँ उपलब्ध हैं, वे श्रुतकेवली भद्रबाहु की नहीं है । इसका अर्थ यह नहीं कि द्वितीय भद्रबाहु के पूर्व कोई नियुक्तियाँ थी ही नहीं । नियुक्ति के रूप में आगम व्याख्या की पद्धति बहुत पुरानी है । इसका पता हमें अनुयोगद्वार से चलता है । वहाँ स्पष्ट कहा गया है कि अनुगम दो प्रकार का होता है । 'सुत्ताणुगम और निज्जुत्तिअणुगम ।' पाक्षिक सूत्र में भी 'सनिज्जुत्तिए' ऐसा पाठ मिलता है ।... ऐसी स्थिति में श्रुतकेवली भद्रबाहु ने नियुक्तियों की रचना की, इस परम्परा को निर्मूल मानने का कोई कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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