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गुरु महाराज के स्वर्गवास के बाद
बाण के कुछ अनुभव
गुरु महाराज देवीहँस जी का स्वर्गवास भाद्रपद कृष्ण पक्ष की द्ववादशी के दिन हुआ था। वह दिन श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय की परम्परानुसार पर्युषण पर्व का पहला दिन था । पर्युषण पर्व आठ दिन का होता है उसकी समाप्ति भाद्र पद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को होती है । उसको जैन सम्प्रदाय वाले सांवत्सरिक दिन कहते हैं ।
श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय में यह दिन सबसे बड़े पर्व के रूप में मनाया जाता है । जैन धर्म के ये पर्युषण पर्व के आठ दिन बहुत पवित्र माने जाते हैं । इन दिनों में जैन धर्मानुयायी त्याग, तप, दान, शास्त्र श्रवरण आदि पुण्य कार्य बड़ी श्रद्धा पूर्वक करते रहते हैं, इन दिनों में सांसारिक व्यवहार की कोई प्रवृत्ति नहीं की जाती । पर्युषण पर्व की समाप्ति के बाद धनचंद जी ने जैसा कि आम रिवाज है अपने परिचित अन्यान्य गांवों के यति जनों को श्री देवीहंस जी महाराज के स्वर्गवास होने के समाचार भिजवाये और भाद्रपद शुवला त्रयोदशी के दिन उनकी मृत्यु के निमित्त श्राद्ध कर्म के रूप में आने के लिये यतियों को आमंत्रित किया । तद्नुसार कोई बीस, पच्चीस यति जन वहाँ आये और
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