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किंचित प्राक् कथन मेरी अस्त-व्यस्त जीवन कहानी के, प्रस्तुत रूप में, लिखने का विचार कैसे और कब अंकुरित हुआ, इसका कुछ निर्देश इस कथा के प्रारम्भ में ही कर दिया गया है। . जब जीवन विषयक इन अतीत संस्मरणों को लेखबद्ध करने का प्रयत्न प्रारम्भ किया, तब कोई कल्पना नहीं थी कि जीवन की कहानी कितनी लम्बी होगी और इसमें क्या-क्या प्रसंग चित्रित होंगे। मेरे पास वैसी कोई नों) या टिप्पणियाँ भी नहीं हैं जिनके आधार पर, मैं कथा का कुछ कलेवर निर्मित कर सकू। किसी विषय के लिखने या बोलने का प्रसंग उपस्थित होता है तो, मैं उस विषय में, पहले से कुछ विचारों को मन में संकलित कर लेने का आदी नहीं रहा । लिखना या बोलना चालू करते समय, प्रसंगानुसार जो विचार उपस्थित होते जाते हैं मैं तद्नुसार उन्हें लिखता या बोलता रहता हूं। लिखते समय जो प्रसंग उपस्थित हो जाता है तद्नुसार उसके संस्मरणों का चिन्तन होता जाता है और उन संस्मरणों का मन में सिंहावलोकन करते हुए, उन्हें वाक्यबद्ध, पंक्तिबद्ध और क्रमबद्ध करते जाने का मेरा अभ्यास बना हुआ है। , प्रस्तुत जीवन कथा के प्रसंगों का ज्यों-ज्यों स्मरण होता गया त्यों-त्यों मैं उन प्रसंगों को क्रमबद्ध रूप में लिखता गया । कथा के लिखने के पहले खयाल था कि पूरी जीवन कथा का
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