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________________ जिनविजय जीवन-कथा यहां पर प्रसंग वश यह उल्लेख करना भी उचित होगा कि सन् १९२१ में जिस छोटी सी शिशुशाला के बनवाने में मन में जो अव्यक्त और अस्पष्ट संकल्प जन्मा था, उसने अब इस सन् १९६६ में साकार रूप धारण किया है, और उसी संकल्प के बल से कोई ३०,००० तीस हजार से अधिक रुपयों की लागत का एक सुन्दर भवन बनाया है जो रूपाहेली में आज एक भव्य स्थान के रूप में गांव वासियों को आनन्दित कर रहा है । आज इसमें राजकुमारी शिशु शाला चल रही है, जिसमें गांव के सभी वर्ग के कोई ५०-६० छोटे-छोटे नन्हे,मुन्ने पढ़ने और खेलने के लिये दिन भर जमे रहते हैं। इस विषय में ठाकुर साहब से जो पत्र व्यवहार पीछे से होता रहा उनको अलग से प्रकाशित किया जायगा। उसके दूसरे दिन दोपहर की गाड़ी से मैंने अहमदाबाद जाने का ते किया । ठाकुर साहब ने फिर कहा कि यहाँ से ६ मील दूरी पर आगूंचा गांव में आपके काका इन्दा जी की बेटी ब्याही हुई है, उसको तथा उसके पति को समाचार भेज देने से वे आपसे मिल लेंगे, और जान पहचान आदि हो जायगी, पर मेरा मन उस समय खिन्न हो रहा था, जिससे मैंने वैसा कुछ करना नहीं चाहा, परन्तु ५) रुपये मैंने उनको दिये कि वे मेरी ओर से बाई प्रताप कुवर को पहुंचा दें, मैं अब फिर कभी आऊँगा तो मिलने करने का प्रयत्न करूँगा। दूसरे दिन दोपहर की गाड़ी से मैं अहमदाबाद के लिये रवाना हुआ, ठाकुर साहब ने हार्दिक भाव से मुझे बिदा किया, अपने ठिकाने की खास बग्घी में बिठाकर मुझे स्टेशन पहुंचाया। आन्तरिक खेद के भार से भरे हुये मन को संभालता हुआ मैं गाड़ी में बैठा और अजमेर चला-ज्यों ही गाड़ी चली मैंने पीछे रूपाहेली की तरफ दृष्टी डाली, मेरी आँखों के सम्मुख मेरी माता की वह करुणा और वत्सलता भरी मुखाकृति झबकने लगी, जिसे मैंने २१ वर्ष पहले उसकी गोद से विदा होते समय अन्तिम बार देखी थी, उस समय तो उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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