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________________ मेरे दादा और पिताजी के जीवन की घटनायें [२१ मेरे दादाजी और पिताजी जब साधु बाबा के भेष में अज्ञात रूप से उस प्रदेश में घूम फिर रहे थे तब वे कुछ समय उस गाँव में भी जाकर रहे थे । वहाँ जंगल में अच्छा बना हुआ पुराना शिवालय तथा उसके पास ही में साधु सन्तों के ठहरने के लिए कुछ मकान भी बने हुए थे । पास ही में अच्छी छोटी-सी नदी भी बहती थी । उस जागीरदार के साथ साधु के भेष में छिपे हुए मेरे दादाजी तथा पिताजी के साथ अच्छा स्नेह सम्बन्ध सा हो गया था । उस जागीरदार के एक पुत्री के सिवाय और कोई सन्तान न थी । मेरे पिताजी को भी उस स्थान से कुछ आकर्षण हो गया था । बाद में जब वे उक्त प्रकार से सिरोही राज्य की सेवा में नियुक्त होने पर अधिकारी के रूप में उस गाँव में गये, तो वृद्ध जागीरदार ने उनको अच्छी तरह पहचान लिया । श्रीर बड़े आश्चर्य मुग्ध होकर उनसे उनके जीवन की पिछली सारी बातें ज्ञात की । उनकी उस इकलौती पुत्री की अवस्था उस समय बीस-बाईस वर्षं की हो गई थी वह अपने वृद्ध पिता की सेवा में नीरत रहती थी । उसकी माता का स्वर्गवास कोई तीन चार वर्ष पहले ही हो गया था । वृद्ध जागीरदार की इच्छा हुई कि अपनी पुत्री का विवाह मेरे पिता के साथ हो जाय । पिताजी की भी इच्छा वैसा सम्वन्ध करने की प्रबल हो गई, और उनका विवाह हो गया । वृद्ध जागीरदार का ठिकाना कोई बड़ा न था परन्तु उसके पास दस बीस हजार का गहनागांठा था जो उन्होंने अपनी पुत्री को दे दिया । वृद्ध जागीरदार के पुत्र न होने से उनकी जागीरी के उत्तराधिकारी तो उनके भाई बेटों में से ही होने वाले थे । पिताजी अपनी पत्नि को साथ लेकर आबू के अचलेश्वर तथा सारणेश्वर महादेव की यात्रा करने गये। वहां से वे फिर पुष्कर आये और वहां से रूपाहेली भी अपने घर सम्भालने आये । मेरी माता का रूपाहेली ही रहना निश्चित हुआ इसलिये वहाँ पर सब व्यवस्था कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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