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जिनविजय जीवन-कथा
खुशालसिंह के पुत्र जयसिंह हुए जो आगूचा में अपनी पिता की जागीरी के स्वामी बने।
जयसिंह के पुत्र प्रतापसिंह और उनके पुत्र राजसिंह हुए।
राजसिंह के दो पुत्र हुए१. ममानसिंहः-जो आगूंचा के स्वामी रहे, इनके समय में आगूंचा
का गढ़ टूटा। २. दूसरे पूत्र रतनसिंह हुए जो आगूचा के गढ़ के टूटने पर रूपाहेली
पाकर बस गये । इनकी एक पत्नी चतुर कँवर बीकानेरी थी जो गाँव सतारा का गुडा (मारवाड़ खारची के पास) के कर्णसिंहजी की बेटी थी।
रतनसिंह की दूसरी पत्नी केशर कवर थी, जो गाँव देसूरी वाले सोलंकी धीरजसिंह की बेटी थी।
रतनसिंह की ३ बेटियाँ:१. किशन कुंवर, पावा में कुंमावत राठौड़ को ब्याही। २. कैलाश कँवर, बूंदी के हाड़ा भगवतसिंहजी को ब्याही । ३. जसवर पाली के देवड़ा भगवतसिंहजी को ब्याही थी।
रतनसिंह के दो पुश हुए:१. संग्रामसिंह २. सूरतसिंह
रतनसिंह के बड़े पुत्र संग्रामसिंह थे। जिन्होंने श्रीनगर के पास एकलसिंगा की ढाणी नामक अपनी जागीर बनाई।
दूसरा पुत्र सूरतसिंह जो बड़ा ही वीर योद्धा था और लड़ता हुआ मरकर बड़ा जू झार हुआ । ___संग्रामसिंह की पत्नी एजनवर थी जो चांपावतों के गुडा के ठाकुर की बेटी थी।
संग्रामसिंह के तीन बेटियां थीं-जिनमें से १. प्रतापकँवर थी जो गाँव सोरती (गंगापुर के पास) के चूण्डावत किशनसिंह को ब्याही थी। __दूसरी केशरकुँवर थी जो गाँव मान्यास के चूण्डावत हरिसिंह को ब्याही।
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