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________________ जिनविजय जीवन-कथा ___ (१) जीवन कथा के संस्मरण लिखने का आद्य प्रसंग सन् १९२८ के जून-जुलाई-अगस्त महीनों में, मैं जर्मनी के विख्यात शहर हाम्बुर्ग की युनिवर्सिटी में कुछ साहित्यिक कार्य करने गया था, उस युनिवर्सिटी में भारतीय संस्कृति और साहित्य के अध्ययन अध्यापन के लिये एक शोध विभाग था। उसके अध्यक्ष डा. वालधेर शुव्रींग पी० एच० डी० थे, जो जर्मनी के तत्कालीन विद्वानों में जैन साहित्य के सबसे बड़े विद्वान् माने जाते थे । मेरा उनसे बहुत वर्षों पहले ही से विशिष्ट सम्बन्ध बना हुआ था। सन् १९२६ में वे भारत की यात्रा करने आये तब मैं अहमदाबाद के महात्मा गाँधीजी द्वारा विशेष रूप से संस्थापित गुजरात विद्यापीठ के भारतीय संस्कृति विषयक प्रधान केन्द्र गुजरात पुरातत्त्व मन्दिर' का अध्यक्ष था। डा० शुत्रींग उस शोध संस्थान द्वारा होने वाले अध्ययन, अध्यापन, संशोधन, प्रकाशन आदि कार्यों से सुपरिचित थे। अतः वे प्रत्यक्ष रूप में उस संस्थान का परिचय और कार्य का निरीक्षण करने की इच्छा से अहमदाबाद आये और मेरे ही अतिथि विशेष के रूप में तीन-चार दिन वहां ठहरे। उस समय उन्होंने मुझे जर्मनी आने और हाम्बुर्ग में अपने यहाँ ठहरने आदि का भी सौहार्द्र भरा आमन्त्रण दिया। यद्यपि उस समय मुझे स्वप्न में भी यह कल्पना नहीं थी कि मैं भी किसी समय, इस जन्म में जर्मनी जा सर्केगा, परन्तु देववशात् सन् १६२८ में मेरे सन्मुख ऐसा अनन्य प्रसंग उपस्थित हो गया जिससे मैं, महात्माजी की सम्मति से गुजरात विद्यापीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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