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जिनविजय जीवन-कथा
पत्रांक ८
ठिकाना रूपाहेली कला
ताः 14-10-41 ई. श्री मान परम् पूज्य गुरुदेव मुनि जी महाराज श्री जिनविजय जी की पुनीत सेवा में सादर प्रणाम ___ अत्रः शम् तत्रास्तुः कृपा पत्र आपका बहुत दिनों के उपरान्त प्रदान हुप्रा । जिसे पढ़कर अत्यन्त प्रसन्नता हुई ।मेरी तरफ से भी पत्र लिखने की भारी भूल हुई इस अपराध की क्षमा करावें क्योंकि आपके तो अनेक प्रकार के कार्य लगे ही रहते हैं। इसलिये अवकाश मिलना ही कठिन है । मुझे तो सदा अवकाश ही था इससे अधिकतर मेरी ही भूल हुई सो क्षमा करें।
आपने लिखा है कि मेरी जन्मभूमि में एक बार और आने की इच्छा है। इसलिये निवेदन है कि अवश्य ही आप अपने मानसिक विचार की पूर्ति के साथ साथ इस भूमि को भी पवित्र करने की कृपा करावें और यहां पदार्पण होने की नियत तिथि की शीघ्र ही सूचना प्राप्त करें कि यहाँ से सवारी आदि का प्रबन्ध ठीक समय पर किया जा सके । .. मेरा पौत्र आयुष्यमान भंवर प्रताप सिंह आजकल उदयपुर ही में उपस्थित हैं। उन्हें भी पत्र लिखा गया है सो दर्शनार्थ वह भी वहाँ उपस्थित होयेगा । विशेष वृत्तांत दर्शन होने पर निवेदन किया जायगा। यहाँ आपकी अतुल कृपा से आनन्द मंगल है।
श्रीमानों का दर्शनाभिलाषि
ठा. चतुरसिंह वर्मा बड़ी रूपाहेली-मेवाड़
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