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मण्डप्या निवास जैन यतिवेश धारण
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प्रयास किया था। अतः यह छपी हुई पुस्तक पढ़ने में मुझे कोई कठिनाई नहीं मालूम दी बल्कि उसके पढ़ने में मुझे बहुत रुचि उत्पन्न हुई।
मैं दोपहर को दो घन्टे उसी महाजन के घर पर बैठकर उस कल्पसूत्र के कुछ पन्ने उनको सुनाये करता था। उसके घर पर उसकी पत्नी के साथ और भी दो चार वृद्ध स्त्रियां वहां आकर बैठ जाती और उस पुस्तक का श्रवण किया करती। यह देखकर वह महाजन बहुत प्रसन्न रहता था। फिर एक दिन उसने मुझे पहनने के लिए नया धोती जोड़ा तथा कुर्ता और अंगोछा भी लाकर दिया। मैंने बड़े हर्ष के साथ उनको स्वीकार किया।
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