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________________ मंडप्या निवास जैन यतिवेश धारण . [१५१ लिए रवाना हुए। बारिया दाहोद के रेल्वे स्टेशन से १२-१५ माइल दूर था । हम दाहोद स्टेशन पर उतरकर पैदल ही बारिया शाम तक पहुँचे । वहां के जैन पंच का जो मुखिया श्रावक था और जिससे ज्ञानचन्दजी की काफी जान पहचान थी उसके मकान पर पहुंचे। पहुंचने पर मालूम हुआ कि प!षणा के लिए किसी अन्य यति का आना निश्चित हो गया है अतः वहां पर कोई जगह नहीं रही। वह रात हम उस श्रावक के मकान में रहे। सायंकाल का भोजन आदि हुआ। मैंने पहली ही दफे गुजरात के लोगों का पहरवेश देखा तथा खाना-पीना आदि का व्यवहार भी देखा। मेवाड़, मारवाड़ आदि के रहने वाले लोगों से गुजरात में रहने वाले लोगों का सामाजिक व्यवहार कुछ विशेष उदार और ममता भरा हुआ मालूम दिया । बारिया गांव एक जागीरी का ठिकाना होने से और गाँव अच्छा व्यापार का केन्द्र होने से गांव के बाजार आदि में अच्छी चहल-पहल दिखाई दी। दूसरे दिन सवेरे उस श्रावक के यहां भोजन करके हम वहाँ से रवाना हुए । चलते वक्त उस श्रावक ने २-३ रुपये ज्ञानचन्दजी को भेंट किये और १ रुपया मुझे भी दिया । हम वहाँ से वापस: रतलाम आये ज्ञानचन्दजी के गुरू ने कहा कि मालवे में अमुक २-३ गांव खाली हैं इसलिए उधर कहीं चले जाओ। किसन को भी किसी एक गांव में बिठा देना । हम वहां से बड़नगर गये। जहां पर ज्ञानचन्दजी का रहना तय हो गया। वहां पर उनको मालूम हुआ कि बदनावर में अभी एक नया जैन मंदिर बन रहा है। वहां पर कोई यति का स्थान नहीं है । बदनावर के एक महाजन जो ज्ञानचन्द जी के जानपहचान वाले थे, उनसे मिले, और कुछ बातचीत निकलने पर उस महाजन ने कहा कि हमारे यहां नया मंदिर बन रहा है और उसमें बिराजमान करने के लिए मूर्तियां भी हम ले आये हैं। पyषणा के दिनों में मांगलिक तथा कल्प-सूत्र सुनाने के लिए इन चेलाजी को भेज दें तो वहाँ पर इनकी व्यवस्था हो जायगी। ज्ञानचंदजी ने मुझसे पूछा तो मैं उसके लिए तैयार हो गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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