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रिणक, सामाजिक आदि प्रवृत्तियों में भी सक्रिय भाग लेता रहो । इन सब विचारों और कार्यों के परिणाम स्वरूप, मैंने जीवन के चालू मार्ग को एक नया मोड़ देना निश्चित किया ।
महात्मा गांधीजी ने सन् १९२० में जब देश को आज़ाद करने का बीड़ा उठाया, और उसकी सिद्धि के लिये अंग्रेजी सत्ता की जड़ उखाड़ फेंकने निमित्त, देशव्यापी असहकार आन्दोलन का आह्वान किया तो मैंने भी, उस आन्दोलन के एक सक्रिय सैनिक बनने की इच्छा से, उसके अनुरूप नूतन परिधान धारण करना निश्चित किया, और इतने वर्षों तक अंगीकृत की हुई उस जीवन चर्या और वेश से विमुक्त हुआ ।
महात्मा गांधीजी का आदेश और आमन्त्रण पाकर, मैं पूना का अपना कार्यक्षेत्र छोड़कर, गुजरात की इतिहास प्रसिद्ध राजधानी अहमदाबाद में नूतन प्रतिष्ठित राष्ट्रीय विश्वविद्यालय ( गुजरात विद्यापीठ ) के एक महत्व के ज्ञानमन्दिर का मुख्य उपासक बना। . सन् १९२० की अक्तूबर की तारीख १६ को महात्माजी ने इस महान् विद्यापीठ की स्थापना की और मैं उसी दिन इस विद्यापीठ का सर्वप्रथम सेवक या सैनिक बना ।
आठ वर्ष तक मैं विद्यापीठ का एक विशिष्ठ सदस्य बना रहा और मेरे विभाग का उत्तम रीति से संचालन करता रहा । इस विभाग का नाम 'गुजरात पुरातत्व मन्दिर' था
और मैं इसका मुख्य प्राचार्य था । इसमें मुझे सर्व श्री काका कालेलकर, डॉ. पण्डित सुखलालजी सिंघवी, पण्डित श्री बेचर
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