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________________ १२४] जिनविजय जीवन - कथा वह खाखी महाराज के व्यवहार के विरुद्ध बर्तने लगा । जमात में जगह जगह आकर मिलने वाले आगन्तुक साधु-संतों आदि के साथ प्रायः उसका अहंकार भरा हुआ दुव्यवहार रहता था। कुछ स्त्री वर्ग के साथ वह छेड़-छाड़ भी किया करता था। इससे तंग आकर खाखी महाराज ने उसको अपनी जमात में से निकाल दिया । वह बड़ा हृष्ट-पुष्ट, लट्ठ, बाज और गाली गलौंच आदि करने में उस्ताद बन गया । वह चाहता था कि खाखी महाराज के पास जो रुपया पैसा श्राता है, वह उसी के पास रहे । खाखी महाराज ने जब अपने पास से उसको निकाल दिया तो फिर वह इनका जो खास मठ था वहाँ जाकर बैठ गया । खाखी महाराज का वह मठ कहीं हरद्वार के पास था उस मठ के साथ काफी सम्पत्ति और जमीन-जायदाद आदि भी है । पिछले सात, आठ वर्षों से खाखी महाराज अपने उस मठ में नहीं गये और इस प्रकार देश देशांतर में घूमते रहे । उस मठ की सार संभाल और सम्पत्ति आदि की व्यवस्था उस मठ में रहने वाले खाखी बाबा के ही कोई गुरु बन्धु रखते थे । परन्तु उसका स्वामित्व शिवानन्द भैरव महाराज के अधिकार में था । शिवानन्द महाराज जिसको अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दें और सरकार से उसकी रजिस्ट्री करादे वही कायदेनुसार सम्पत्ति का मालिक बन सकता है | अतः वह शिष्य इस बात की कोशिश कर रहा था कि शिवानन्द भैरव महाराज उसको अपना उत्तराधिकारी प्रकट कर दें । हम लोग जब उज्जैन पहुँचे तो उसको यह बात मालूम हुई को खाखी महाराज ने एक कोई नये चेले को दीक्षा दी है और वह चेला कुछ बुद्धिमान और अच्छे खानदान का है । खाखी महाराज का इस वेले पर बहुत स्नेह बढ़ रहा है और दो चार वर्ष में इसे अच्छी तरह विद्या पढ़ा कर होशियार करके इसको अपना उत्तराधिकारी बना देना चाहते हैं । फिर उसने यह भी सुना कि खाखी महाराज ने पिछले दो चार वर्षों में काफी धन इकट्ठा कर लिया है। आने वाले दो-चारवर्ष खाखी महाराज मालवा, गुजरात, राजस्थान आदि प्रदेश ही में घूमना चाहते थे । ये सब बातें जान सुनकर वह चेला उज्जैन चला आया और वहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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