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________________ श्री सुखानन्द जी का प्रवास और भैरवी-दीक्षा [१०३ साष्टांग दंडवत् प्रणाम किया। खाखी महाराज ने पूछा कि क्यों बच्चा रात को नींद तो अच्छी आई न ? जब मैंने कहा कि महाराज अनजान जगह आदि के कारण नींद कुछ ठीक नहीं आई। परन्तु चांदनी रात में इधर-उधर देखने में मेरा मन लगा रहा। खाखी महाराज ने कहा आज अपना डेरा यहां से उठेगा और जावद को जाना है। रुद्र भैरव और कामदार जी तुमको सब बातें बताते रहेंगे, उस तरह सब काम करते रहना किसी बात का मनमें संकोच न रखना। फिर शौच आदि से निवृत होकर सुखानन्द जी के कुंड में नहाने गये । सभी ने अपने शरीर पर भभूति लगा ली। मैंने भी उनकी देखा देखी बड़े शौक से बदन पर भभूति मल ली। महादेव जी के दर्शन कर हम डेरे पर आये और फिर सब डेरा समेटने में लग गये । खाखी महाराज सुबह ठंडाई पिया करते थे, उस ठंडाई में बदाम इलायची पादि डाली जाती थी नियमानुसार मुख्य चेलाजी जब खाखी महाराज के लिये एक अच्छे बड़े से चांदी के लोटे में ठंडाई भरकर लाये तो खाखी महाराज ने चेलाजी से कहा कि एक गिलास भरकर इस नये बच्चे को भी दे दो, तदनुसार मुझे भी चेला जी ने एक चांदी का गिलास भर लाकर दिया। मैंने उसे खाखी महाराज की आज्ञा होने से बड़े संकोच के साथ पी लिया। चांदी के गिलास में पेय पीने का जीवन में वह प्रथम प्रसंग था इसलिये वह बात मन में सदा के लिए जम गई और जब कभी ऐसे चांदी के गिलास में दूध, चाय मोसम्बी का रस आदि पीने का प्रसंग उपस्थित होता है, उस दिन का वह प्रथम पानप्रसंग अवश्य याद आ जाता है। ___ खाखी महाराज के सब परिजन कूच करने की तैयारी में लग गये और डेरे आदि को समेट कर गाड़ी में रखने लगे । खाखी महाराज के काफिले में एक तो बूढ़ा सा हाथी था, तीन चार ऊंट और तीन चार ही घोड़े-घोड़ी थे तथा तीन चार ही बैलगाड़ियां थी । एक ऊंट पर दो नगारे रखे गये । भोर एक छोटा सा भगवा झंडा भी उस पर लगाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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