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________________ जिन विजय जीवन-कथा पर आसन जमाये बैठे थे। उनके सामने एक धूनी बनी हुई थी, जिसमें कुछ लकड़ियाँ जल रही थी और राख का ढेर जमा हुआ था। मुझे पहले सुखानन्द जी वाले बाबा के पांवा धोक लगाया गया। उन्होंने कुछ आशीर्वादात्मक शब्द कहे फिर मुझे एक तरफ खड़ा करके खाखी बाबा के उन बड़े शिष्य ने एक भगवे रंग की लंगोट का कपड़ा दिया और कहा कि जैसे हम लंगोट पहने हए हैं वैसे तुम पहन लो। मुझे इससे पहले नदी, तालाब, बावड़ी आदि में स्नान करते समय लंगोट पहनने का अच्छा अभ्यास था इसलिये मुझे लंगोट लगाने में कोई कठिनाई नहीं हुई । लंगोट के साथ कटि पर बाँधने के लिये मूज की बनी हुई मोटी रस्सी भी दी गई फिर मुझे उस धूनी के चारों तरफ तीन चक्कर लगाने के लिये कहा गया, साथ में, 'मों नमः शिवायः' इस • मंत्र वाक्य का उच्चारण भी करते रहने की सूचना दी-बाद में धूनी के एक किनारे पर दोनों हाथ घुटनों की तरफ लम्बे करके खड़े रहने का आदेश दिया और फिर खाखी बाबा के बड़े शिष्य ने उस धूनी में से बारीक भभूत लेकर उसे गंगाजल में घोलकर मेरे सारे शरीर पर लेप कर दिया । मेरे कपाल, दोनों भुजाओं तथा छाती पर चन्दन का त्रिपुड बनाया गया; मेरे दोनों कानों में लोहे के छल्ले पहनाये गये । मेरे कान पहले से बिंधे हुए थे, दोनों हाथों में भी लोहे के पतले कड़े पहना दिये गये और दाहिने हाथ में लोहे का चिमटा दिया गया, जिसमें चार पाँच कड़ियां लगी हुई थी। बांये हाथ में एक छोटा सा त्रिशूल धारण कराया गया--एक छोटा सा पीतल का कमण्डल तथा बैसे ही एक मृगछाला दूसरे हाथ की बगल में दी गई । गले में रुद्राक्ष की माला - पहनाई गई। । ऐसा बटुक भैरव का स्वांग धारण कर मैं महादेव जी के मन्दिर की सीढ़ियां चढ़ने लगा मेरी दाहिनी तरफ खाखी बाबा के मुख्य शिष्य चल रहे थे । वे मुझे 'ॐ नमः शिवायः' इस वाक्य का उच्चारण करवा रहे थे और दायें हाथ में जो चिमटा था उसको इस तरह हिलाते जाना सिखा रहे थे जिससे उसमें लगी कड़ियों का छन्न-छन्नाट शब्द होता रहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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