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जिनविजय जीवन-कथा
नये लड़के को महादेवजी के मन्दिर में दीक्षा देनी है, इसलिये पूजा आरती आदि की सब सामग्री तैयार कर लेना और इसका सिर. मुंडन हो जाने पर स्नान आदि कराकर भभूत लगाकर कोपीन पहनाकर मंदिर में ले आना, जहाँ पर खाखी महाराज इसे गुरु मंत्र देकर दीक्षा देंगे।" ___खाखी महाराज के इस चेले ने बहुत गौर से बड़ी देर तक मेरे सामने देखा और कामदारजी से कहा कि गुरुजी ने चेला तो बहुत अच्छा पसन्द किया और फिर मुझ से पूछा--"भैया तेरा नाम क्या है ?" ___ मैं जवाब दूं उसके पहले ही उन सेवकजी ने-जो मेरे पास ही खड़े थे, बोले--'इसका नाम किशन लाल है !' . सुनकर चेलाजी ने कहा--"तब तो यह आज से किशन भैरव बनेगा"--ऐसा कहकर कुछ गुनगुनाता हुआ वह शिष्य अपनी छोलदारी में चला गया।
सेवकजी ने कामदारजी से पूछा--इन चेलाजी महाराज का नाम क्या है और कितने बरस इनको दीक्षा लिये हुए हो गये ? ये रहने वाले कहां के हैं ?
कामदारजी बोले-इनका नाम रुद्र भैरव है, इसको दीक्षा दिये दस बारह बरस हो गये हैं। मथुरा के किसी चौबे का लड़का है । खाखी महाराज का इस पर कुछ विश्वास है; परन्तु मिज़ाज जरा वैसा ही है । बात बात में बिगड़ जाता है और दूसरे चेलों से ईर्ष्या भी रखता है । इस लिये उनको बुरा भला कहा करता है।" ____ इतने में नाई आ गया तो वे मुझसे बोले-"ले भैया नाई के सामने बैठ जाओ, जिससे तुम्हारे माथे का मुंडन हो जावे ।" __कामदारजी का आदेश पाकर मैं मन में हंसता हुआ नाई के सामने बैठ गया। नाई ने तुरन्त अपना उस्तरा निकाला और पत्थर की सिल्ली पर दो चार बार उस्तरे को उल्टा सीधा फिरा कर उसकी धार बनाली और एक लोटे से पानी लेकर मेरे सिर के बाल गीले कर दिये, फिर
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