________________
सद्दे रुवे य गंधे य रसे फासे तहेव य । पंचविहे कामगुणे निच्चसो परिवज्जए ॥
A monk should always abstain from the pleasure of the objects of the five senses i.e. sound, form, smell, taste and touch.
शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श इन पाँच प्रकार की इन्द्रियों के कामभोग के विषयों का मुनि सदा त्याग करे ।
२।०६, ३५, ०iध, २स, अने स्पर्श थे पांच પ્રકારની ઇન્દ્રિયોના કામભોગના વિષયોનો મુનિએ સદા ત્યાગ કરવો જોઈએ.
93 For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org