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________________ मुनि की आचार व्यवस्था का निर्धारण करने वाला अनुयोग चरणकरणानुयोग है उसका प्रमुख आगम है आचारांग | आचार में विधि-निषेध दोनों होते हैं। विधि और निषेध के दो-दो आयाम हैं१. उत्सर्ग मार्ग २. अपवाद मार्ग आशीर्वचन सामान्य मार्ग उत्सर्ग मार्ग है, विशेष मार्ग अपवाद मार्ग है । इस विषय का मूल आगम है व्यवहार । इस विषय की व्यापक विवेचना व्यवहार भाष्य में मिलती है। स्थानांग सूत्र में पांच प्रकार के व्यवहार बतलाए गए हैं १. आगम २. श्रुत ३. आज्ञा ४. धारणा ५. जीत । श्रुत आदि चारों व्यवहारों का प्रस्तुत भाष्य में निर्देश मिलता है। प्रायश्चित्त की विशद जानकारी के लिए इसका बहुत महत्त्व है। व्यवहार भाष्य मुनि दुलहराज जी एवं समणी कुसुमप्रज्ञा के द्वारा शोधपूर्ण सम्पादित है। उसका हिन्दी अनुवाद भी मुनि दुलहराज जी ने किया है। मुनि दुलहराज जी प्रारंभ से ही मेरे परिपार्श्व में रहे हैं। उन्होंने मेरी पचासों पुस्तकों का संपादन किया है। पूज्य गुरुदेव तुलसी के वाचना प्रमुखत्व 计 प्रारब्ध आगम संपादन के कार्य में निरंतर संलग्न रहे हैं। इस क्षेत्र में उन्होंने बहुत निष्ठा और तन्मयता से कार्य किया है, कर रहे हैं। जीवन के आठवें दशक की संपन्नता पर इतने विशालकाय ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद कर उन्होंने पाठक को सुविधा का अनुदान दिया है। इस कार्य में मुनि राजेन्द्र कुमार और मुनि जितेन्द्र कुमार भी उनके सहयोगी रहे हैं आगम को युगभाषा में प्रस्तुत करने का यह प्रयत्न साधुवादाई है। विश्वास है, यह पाठक के लिए बहुत उपयोगी होगा। १ जनवरी २००४ जामनेर Jain Education International For Private & Personal Use Only -आचार्य महाप्रज्ञ www.jainelibrary.org
SR No.001944
Book TitleSanuwad Vyavharbhasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages492
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G005
File Size14 MB
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