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________________ प्राचीन जैन साहित्य के प्रारंभिक निष्ठासूत्र ૨ ૨૯ साहित्य का निर्माण हुआ है और भारतीय दार्शनिकों में संवाद की स्थापना करने का प्रयत्न हुआ धार्मिक और दार्शनिक साहित्य के अलावा व्याकरण, अलंकार, नाटक, संगीत, नृत्य आदि विविध साहित्य की लौकिक विधाओं में भी जैनों का प्रदान सामान्य नहीं है । यह जैन साहित्य इसलिए है कि इसकी रचना जैनों ने की है परन्तु वास्तविक रूप से उसका जैन धर्म या निष्ठा के साथ कोई सम्बन्ध नहीं । एतदर्थ वह साहित्य उसके विषय जैन संस्कृति मात्र में सीमित न हो कर सार्वजनिक है अतएव सर्वोपयोगी है । मात्र जैनों के आहाते में उसे बन्द नहीं किया जा सकता । यह इसलिए कि जैन साहित्य का जो मख्य लक्षण या ध्येय है कि वह आत्मा को कर्म से मुक्त होने में सहायक बने—यह लक्षण इस प्रकार के लौकिक साहित्य में उपलब्ध नहीं होता इसलिए उसे जैन साहित्य के अंतर्गत गिनना आवश्यक नहीं । सिर्फ विद्वानों की उस ओर उपेक्षा हैं उनके निवारण अर्थ उसका परिचय जैन साहित्य में दिया जाय तो वह उचित प्रस्तुत लेख में जैन साहित्य की निष्ठा के बारे में साधारण परिचय देने का प्रयत्न किया है । यह कोई अन्तिम शब्द नहीं है । विचारक विशेष चर्चा-विचारणा करें और एक निर्णय पर आएँ ऐसी विनती करूँ तो अयोग्य न होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001940
Book TitleSruta Sarita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageEnglish, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size18 MB
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