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________________ परिशिष्ट संदृष्टि संख्या १० गुणस्थानों में बन्ध-अवन्धादिकी संदृष्टि इस प्रकार है :नाम गुणस्थान बन्धव्युच्छिन्न बन्ध अबन्ध सर्वप्रकृतियोंकी विशेष विवरण . अपेक्षा अबंध १ मिथ्यात्व १६ ११७ ३+ ३१ +तीर्थकर और आहारद्विकके विना २ सासादन २५ १०१ १६ ४७ ३ मिश्र ० ७४+ ४६ ७४ + मनुष्यायु और देवायुके विना ४ अविरत ७७+ ४३ ७१ + तीर्थंकर, मनुष्यायु और देवायुके मिल जानेसे ५ देशविरत ६ प्रमत्तविरत ६३ ५७ ८५ ७ अप्रमत्तविरत ५६ + ६१ ८६ + आहारकद्विक मिल जानेसे ६२ ५६ ६२ 26 Mkcom Nur MD. ० ० ० ० ०0rr १२७ १२६ ० ० ८ अपूर्वकरण ५६ ६४ ६ ३० २६ ६४ १२२ १ .१ २२१८ १२६ २१ ह अनिवृत्तिकरण३ २० १०० १२८ १६ १०१ १८ १०२ १३० १० सूक्ष्मसाम्पराय १६ १७ १०३ १३१ ११ उपशान्तमोह १ ११६ १४७ १२ क्षीणमोह १ ११६ १३ सयोगकेवली १ ११६ १४ अयोगिकेवली १४८ संदृष्टि संख्या ११ ___ गुणस्थानों में उदय-अनुयादिकी संदृष्टि इस प्रकार है:नाम गुणस्थान उदय-व्युच्छिन्न उदय अनुदय सर्व प्रकृतियोंकी विशेष विवरण अपेक्षा अनुदय । १ मिथ्यात्व ५ ११७५+ ३१ + सम्यक्त्व प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व, आहारकद्विक और तीर्थकरके विना २ सासादन र १११ ११ ३७ + नरकानुपूर्वीके विना ३ मिश्र १ १०० २२+ ४८ + तिर्यगानु० अनुष्यानु० देवानुपूर्वीके विना और सम्यग्मिथ्यात्वके साथ ४ अविरत १७ १०४+ १८४४ + चारों आनुपूर्वी और सम्यक्त्व प्रकृति के मिलानेसे ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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