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________________ ५०८ पञ्चसंग्रह पीत-पद्मयोः सत्त्वस्थानानि त्रिनवतिकादीनि चत्वारि ६३।१२।११।१०। शुक्ललेश्यायां त एव पीतपद्मोक्तविपाका उदयस्थानानि सप्त २१॥२५॥२७॥२८२४॥३०॥३१ भवन्ति । केवलिसमुद्धातापेक्षया विंशतिकोदयश्च सत्तास्थानानि चत्वारि त्रिनवतिकादीनि उपरिमद्विकं वर्जयित्वा चतुरधःसत्त्वस्थानानि अशीतिकार्दानि चत्वारि । एवमष्टौ ९३।१२।११।१०।८०1७६७८७७ ॥४५७॥ तेज और पद्मलेश्यामें प्रथमके चार सत्तास्थान होते हैं। शुक्ललेश्यामें विपाक अर्थात् उदयस्थान तो वे ही होते हैं, जो कि तेज-पद्मलेश्यामें बतलाये गये हैं। किन्तु सत्तास्थान आदिके चार तथा उपरिम दो को छोड़कर अधस्तन चार, इस प्रकार आठ होते हैं ।।४५७॥ तेज-पद्मलेश्यामें ६३, ६२, ६१, ६० ये चार सत्तास्थान होते हैं। शुक्ललेश्यामें २१, २५, २७, २८, २९, ३०, ३१ ये सात उदयस्थान; तथा ६३, ६२,६१,६०,८०,७६, ७८ और ७ आठ सत्तास्थान होते हैं। अडवीसाई बंधा पिल्लेसे उदय उवरिमं जुयलं । उवरि छचिय संता भव्वे बंधा हवंति सव्वे वि ॥४५८॥ सुक्काए बंधा ५-२८।२६।३०।३१।। अल्लेसे उदया २--81८। संता ६-८०७६७८७७। १०। भव्वे बंधा सव्वे २३।२५।२६।२८।२६।३०।३१।१। शुक्ललेश्यायां बन्धस्थानान्यष्टाविंशतिकादीनि पञ्च २८।२६।३०।३१।। निलेश्ये अयोगे उदयोपरिमयुग्मं नवकाष्टकद्वयमस्ति ।८ । सत्त्वस्थानानि उपरिमस्थानानि षट् ८०1७६७८७७।१०।। इति लेश्यामार्गणा समाप्ता। भव्यमार्गणायां भव्ये बन्धस्धानानि सर्वाण्यष्टौ २३।२५।२६।२८।२६॥३०॥३१॥ १ ४५८॥ शुक्ललेश्यामें अट्ठाईसको आदि लेकर पाँच बन्धस्थान होते हैं। लेश्यासे रहित अयोगिकेवलीके उपरिम दो उदयस्थान; तथा उपरिम छह सत्तास्थान होते हैं। भव्यमार्गगाकी अपेक्षा भव्य जीवोंके सभी बन्धस्थान होते हैं ।।४५८॥ शुक्ललेश्यामें २८, २९, ३०, ३१, १ ये पाँच बन्धस्थान होते हैं। अलेश्यजीवोंके है और ८ ये दो उदयस्थान; तथा ८०, ७६, ७८, ७७, १० और ६ वे छह सत्तास्थान होते हैं। भव्योंके २३, २५, २६, २८, २६, ३०, ३१, और १ ये सभी बन्धस्थान होते हैं। दो उवरि वजित्ता संतुदया होंति सव्वे वि । अभव्वे तीसंता बंधा उदया य उवरि दो वजं ॥४५६॥ उदया है-२१।२४।२५।२६।२७।२।२६।३०।३।। संता ११-१३।१२।११।१०।८८।८४८२। 501७६७८७७॥अभब्वे बंधा ६-२३।२५।२६।२८ारहा३०॥ उदया -२१॥२४॥२५/२६।२७।२८। २६।३००३१॥ भव्ये सत्वोदयस्थानानि उपरिमद्वयं वर्जयित्वा सर्वाण्युदयसत्त्वस्थानानि भवन्ति। भव्ये उदया नव २१॥२४॥२५।२६।२७।२८।२६।३०।३१ । सरवस्थानकादशकम् १३।१२।११1801८८1८४८२। ८०1७६७८७७ । अभव्ये बन्धस्थानि त्रयोविंशतिकादित्रिंशरकान्तानि २३१२५।२६।२८।२६।३० । आहारक युतं त्रिंशत्कं न स्यात्, किन्तु त्रिंशत्कमुद्योतयुतं स्यात् । उपरिमस्थानद्वयं वर्जयित्वा उदयस्थानानि नव २१॥२४॥२५।२६।२७।२८।२६।३०।३१ ॥४५६॥ भव्योंके उपरिम दो को छोड़कर शेष नौ उदयस्थान; तथा उपरिम दो को छोड़कर शेष ग्यारह सत्तास्थान होते हैं। अभव्योंके तीस तकके छह बन्धस्थान; तथा उपरिम दो को छोड़कर शेष नौ उदयस्थान होते हैं ।।४५६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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