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________________ सप्ततिका अयोगिकेवलीके अस्सी, उन्यासी अठ्ठहत्तर, सत्तहत्तर, दश और नौप्रकृतिक छह सत्त्वस्थान जानना चाहिए ॥४१७॥ अयोगिजिनके ६, ८ प्रकृतिक दो उदयस्थान और ८०, २६, ७८, ७२ १० और प्रकृतिक छह सत्त्वस्थान होते हैं । इन सब स्थानोंका स्पष्टीकरण टीकामें दी गई संदृष्टिमें किया गया है। इस प्रकार गुणस्थानोंमें नामकर्मके त्रिसंयोगी प्ररूपणा को । अब मूलसप्तिकार मार्गणाओमें नामकर्भके बन्ध, उदय और सत्त्वस्थानोंका विचार करते हुए सबसे पहले गतिमार्गणामें उनका निर्देश करते हैं[मूलगा०४६]'दो छकट्ठ चउकं णिरयादिसु पयडिबंधठाणाणि । पण णव दसयं पणयं ति-पंच-वारे चउकं च ॥४१८।। नरक० तियंच० मनुष्य० देव० urws णिरयादिसु उ० ५ १० ५ स० ३ ५ १२४ अथ चतुर्दशमार्गणासु नामबन्धोदयसत्त्वस्थानानां त्रिसंयोगमाह--['दो छक्कट चउक्कं' इत्यादि। नरकादिगतिपु नामप्रकृतिबन्धस्थानानि द्वे २ षटु ६ अष्टौ ८ चत्वारि ४ । नामप्रकृत्युदयस्थानानि पञ्च ५ नव १ दश १० पञ्च ५। नामप्रकृतिसत्वस्थानानि श्रीणि ३ पञ्च ५ द्वादश १२ चत्वारि ४॥४१॥ नरक० ति० म० देव. वं. २ ६ ८ ४ ० ० नरक आदि गतियों में नामकर्मके प्रकृतिक बन्धस्थान क्रमशः दो, छह, आठ और चार होते हैं । उदयस्थान क्रमशः पाँच, नौ, दश और पाँच होते हैं। तथा सत्त्वस्थान क्रमशः तीन, पाँच, बारह और चार होते हैं ॥४१८।। इस गाथाके द्वारा चारों गतियोंके नामकर्म-सम्बन्धी बन्ध, उदय और सत्तास्थान बतलाये गये हैं, जिनकी संदृष्टि मूल और टीकामें दी हुई है। अब उक्त गाथा-सूत्र-द्वारा सूचित स्थानोका भाष्यगाथाकार स्पष्टीकरण करते हुए पहले नरकगतिसम्बन्धी बन्धादि-स्थानोंका निरूपण करते हैं "णिरए तीसुगुतीसंबंधट्ठाणाणि होति णायव्वा । इगि-पण-सत्तट्ठऽधिया वीसा उगुतीसमेवुदया ॥४१॥ संतहाणाणि पुणो होति तिण्योव णिरयवासम्मि । वाणउदिमादियाणं णउदिट्ठाणतियाणि सया॥४२०॥ "णिरयगईए बंधो २६।३०। उदया २१।२५।२७।२८।२६। संता ६२।११।१०। 4. ५, 'श्वभ्रे बन्धे' 1. सं० पञ्चसं० ५, ४२६-४३०। 2. ५, ४३१। 3. ५, ४३२। इत्यादिगद्यभागः (पृ० २१८)। १. सप्ततिका० ५१ । परं तत्र पाठोऽयम्--- दो छक्कट्ठ चउक्कं पण णव एक्कार छक्कगं उदया। नेरइआइसु संता ति पंच एक्कारस चउकं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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