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________________ सप्ततिका एवमुक्तप्रकारं त्रिंशत्कम् । भङ्गौ २ । तत्र दुःस्वरे संप्रक्षिप्ते निक्षिप्ते एकत्रिंशत्कं नाम प्रकृत्युदयस्थानं भाषापर्याप्ति प्राप्तस्योद्योतोदयसहितद्वीन्द्रियस्योदयागतं भवति ३१ । दुःस्वरं तन निक्षिप्तं नवीनविशेष इति । तत्र यशोयुग्मस्य भङ्गौ द्वौ ३। जघन्याऽन्तमौहूर्तिकी स्थितिः, उत्कृष्टा द्वादश वार्षिकी स्थितिः तस्य भाषापर्याति प्राप्तस्य द्वीन्द्रियस्येति ॥१३॥ इसी प्रकार भाषापर्याप्तिको पूर्ण करनेवाले द्वीन्द्रियजीवके तीसप्रकृतिक उदयस्थानमें दुःस्वरप्रकृतिके प्रक्षेप करने पर इकतीसप्रकृतिक उदयस्थान हो जाता है । यहाँ पर भी भंग दो ही होते हैं ॥१३४॥ बेइंदियस्स एवं अट्ठारस होति सव्वभंगा दु । एवं वि-ति-चउरिंदियभंगा सव्वे वि चउवण्णा ॥१३॥ बेइंदियस्स सम्वे भंगा १८ । एवं ति-चउरिदियाणं । सव्वे भंगा ५४ । द्वीन्द्रियस्यैवं पूर्वोक्तप्रकारेणाष्टादश सर्वे भगा विकल्पाः स्थानभेदा भवन्ति १८ । एवं त्रीन्द्रियस्याटादश भङ्गाः १८। चतुरिन्द्रियजीवस्याष्टादश भङ्गाः १। सर्वे एकीकृताः विकलत्रयाणां चतुःपञ्चाशत्सर्व भङ्गाः ५४ भवन्ति ॥१३५॥ इस प्रकार द्वीन्द्रिय जीवके सर्व भङ्ग अट्ठारह होते हैं । त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवोंके भी अट्ठारह-अठारह भंग जानना चाहिए। इस प्रकार द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियके सर्व भंग चौवन होते हैं ॥१३५।। द्वीन्द्रियके सर्व भंग १८ हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियके भी भंग १८-१८ होते हैं। विकलेन्द्रियोंके सर्व भंग ५४ होते हैं। अब विकलेन्द्रियोंके तीस और इकतीस प्रकृतिक उदयस्थानोंका काल बतलाते हैं तीसेक्कतीसकालो जहण्णमंतोमुहुत्तयं होइ । उक्कस्सं पुण णियमा उक्कस्सठिदी य किंचूणा ॥१३६॥ एत्थ बेइंदियम्मि तीस-इक्वत्तोसठाणाणं ३०३३ ठिदी वासा १२ । तेइंदियम्मि तीसेक्कतीसठाणाणं ३०॥३१ ठिदी दिवसा ४६ । चउरिदियम्मि तीसेक्कतीसठाणाणं ३०॥३१ ठिदी मासा ६। त्रिंशत्कस्य एकत्रिंशत्कस्य च नामप्रकृत्युदयस्थानस्य ३०॥३१ जघन्यकाल भवति । पुनः उत्कृष्टकालो निजनिजोत्कृष्टायुःस्थितिरेव किञ्चिन्न्यूनविग्रहगतिशरीर मिश्रशरीरपर्याप्त्युच्छ्रासपर्याप्तिकालहीनमुस्कृष्टायुरित्यर्थः ॥१३६॥ __ अत्र द्वीन्द्रियाणां त्रिंशत्कस्थानस्य ३० एकत्रिंशत्कस्थानस्य च ३१ स्थितिर्दादशवार्षिकी १२ किञ्चिन्न्यूना । त्रीन्द्रियाणां त्रिशत्कस्थानस्यकत्रिंशत्कस्थानस्य च स्थितिदिवसा एकोनपञ्चाशत् ४६ किञ्चिन्यूनाः । चतुरिन्द्रियेषु त्रिंशरकस्य एकत्रिंशत्कस्थानस्य च स्थितिः षण्मासा ६ किञ्चिन्न्यूना । विकलेन्द्रियोंके तीसप्रकृतिक और इकतीसप्रकृतिक उदयस्थानोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल नियमसे कुछ कम अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है ॥१३६॥ __यहाँ पर द्वीन्द्रियके तीस और इकतीस प्रकृतिक उदयस्थानोंकी उत्कृष्ट स्थिति १२ वर्ष है। त्रीन्द्रियके तीस और इकतीस प्रकृतिक उदयस्थानोंकी उत्कृष्ट स्थिति ४६ दिन है और चतुरिन्द्रियके तीस व इकतीस प्रकृतिक उदयस्थानोंकी उत्कृष्ट स्थिति ६ मास है। 1. सं० पञ्चसं० ५, १५५ । 2. ५, १५६ । ३. ५, 'तत्र' इत्यादिगद्यांशः (पृ० १७३) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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