________________ तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् 251 षष्ठोऽध्यायः कायवाङ्मनःकर्म योगः // 6-1 // स आस्रवः // 6-2 // शुभः पुण्यस्य // 6-3|| अशुभः पापस्य // 6-4 // सकषायाकषाययोः साम्परायिकेर्यापथयोः // 6-5 // अव्रतकषायेन्द्रियक्रियाः पञ्चचतुः पञ्चपञ्चविंशतिसङ्ख्याः पूर्वस्य भेदाः // 6-6 // तीव्रमन्दज्ञाताज्ञातभाववीर्याधिकरणविशेषेभ्यस्तद्विशेषः // 6-7 // अधिकरणं जीवाजीवाः // 6-8 // आद्यं संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकषायविशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः // 6 9 // निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गा द्विचतुर्द्वित्रिभेदाः परम् // 6-10 // तत्प्रदोष निह्नव मात्सर्यान्तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावरणयोः // 6-11 // दुःखशोकतापाक्रन्दनवधपरिदेवनान्यात्मपरोभयस्थान्यसद्वेद्यस्य // 6-12 // भूतव्रत्यनुकम्पा दानं सरागसंयमादियोगः क्षान्तिः शौचमिति सद्वेद्यस्य // 6-13 // केवलिश्रुतसंघधर्मदेवावर्णवादो दर्शनमोहस्य // 6-14 // कषायोदयात्तीव्रात्मपरिणामश्चारित्रमोहस्य // 6-15 // बारम्भपरिग्रहत्वं च नारकस्यायुषः // 6-16 // मायातैर्यग्योनस्य // 6-17 // अल्पारम्भपरिग्रहत्वं स्वभावमार्दवार्जवं च मानुषस्य // 6-18 // निःशीलव्रतत्वं च सर्वेषाम् // 6-19 // सरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जराबालतपांसि दैवस्य // 6-20 // योगवकता विसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः // 6-21 // विपरीतं शुभस्य // 6-22 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org