________________ तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् 243 न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम् // 1-19 // श्रुतं मतिपूर्वं व्यनेकद्वादशभेदम् // 1-20 // द्विविधोऽवधिः // 1-21 // तत्रभवप्रत्ययो नारकदेवानाम् // 1-22 // यथोक्तनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम् // 1-23 // ऋजुविपुलमती मनःपर्यायः // 1-24|| विशुद्ध्यप्रतिपाताभ्यां तद्विशेषः // 1-25 // विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमनःपर्याययोः // 1-26 // मतिश्रुतयोनिबन्धः सर्वद्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु // 1-27 // रूपिष्ववधेः // 1-28 // तदनन्तभागे मनःपर्यायस्य // 1-29 // सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य // 1-30 // एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्थ्यः // 1-31 // मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च // 1-32 // सदसतोरविशेषाद् यदृच्छोपलब्धेरुन्मत्तवत् // 1-33 // नैगमसंग्रहव्यवहारजेंसूत्रशब्दा नयाः // 1-34|| आद्यशब्दौ द्वित्रिभेदौ // 1-35 // द्वितीयोऽध्यायः औपशमिकक्षायिकौ भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च // 2-1 // द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् // 2-2 // सम्यक्त्वचारित्रे // 2-3 // ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च // 2-4 // ज्ञानाज्ञानदर्शनदानादिलब्धयश्चतुस्त्रित्रिपंचभेदाः यथाक्रमंसम्यक्त्वचारित्रसंयमासंयमाश्च // 2-5 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org