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मुहूर्तराज ]
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अन्धादि संज्ञक नक्षत्र एवं तत्फल ज्ञापक सारणी
संज्ञाएँ
फल
अन्धाक्ष
मन्दाक्ष
नक्षत्रों के नाम धनिष्ठा, पुष्य, रोहिणी, पू.षाढ़ा, विशाखा, उत्तरा फाल्गुनी, रेवती हस्त, उत्तराषाढ़ा, अनुराधा, शतभिषा, आश्लेषा, अश्विनी, मृगशिरा आर्द्रा, मघा, पूर्वाभाद्रपद, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, भरणी, स्वाती, पुनर्वसु, श्रवण, कृतिका, उत्तराभाद्रपद, मूल, पू फाल्गुनी
मध्याक्ष
इनमें खोई वस्तु शीघ्र मिले प्रयल से मिले दूर सुनने में आवे वस्तु न सुनने में आवे और न ही मिले
स्वक्ष (सुलोचन)
निम्नांकित नक्षत्रों में सर्पदष्ट की अवश्य ही मृत्यु - वशिष्ठ मत से -
मघाविशाखानलसार्पयाभ्यनैऋत्यरौद्रेषु च सर्पदष्टः ।
सुरक्षितो विष्णुरथेन सोऽपि, प्राप्नोति कालस्य मुखं मनुष्यः॥ अन्वय - मघाविशाखानलसार्पयाभ्यनैऋत्यरौद्रेषु सर्पदष्टः मनुष्यः विष्णुरथेन सुरक्षितोऽपि कालस्य मुखं प्राप्नोति। ___ अर्थ - मघा, विशाखा, कृत्तिका, आश्लेषा, भरणी, मूल एवं आर्द्रा इन नक्षत्रों में यदि किसी को साँप डॅस ले तो चाहे उसकी भले ही साक्षात् गरुड़ रक्षा करे तो भी वह मनुष्य अवश्यमेव काल को प्राप्त हो जाता है अर्थात् उसकी मृत्यु हो ही जाती है। राशियों के स्वामी - (शी. बोध)
मेष वृश्चिकयोभौंमः, शुक्रो वृषंतुलाधिपः । बुधः कन्यामिथुनयोः पतिः कर्कस्य चन्द्रमाः ॥ स्वामीज्यो मीनधनुषोः शनिर्मकरकुंभयोः ।
सिंहस्याधिपतिः सूर्यः कथितो गणकोत्तमैः ॥ अर्थ - मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल, वृष और तुला का स्वामी शुक्र, मिथुन और कन्या का स्वामी बुध और कर्क का स्वामी चन्द्र है। धनु और मीन का स्वामी गुरु, मकर और कुंभ का स्वामी शनि तथा सिंह का स्वामी सूर्य है ऐसा गणितज्ञों ने कहा है। सर्वदेश प्रसिद्ध अष्टकूट - (मु.चि.वि.प्र.श्लो. २१)
वर्णो वश्यं तथा तारा, योनिश्च ग्रहमैत्रकम् ।
गणमैत्रम् भकूटं च नाडी चैते गुणाधिकाः ॥ अन्वय - वर्णः वश्यं, तारा, योनीः, ग्रहमैत्रकम् गणमैत्रकम्, भकूटं नाडी च एते गुणाधिकाः (एकादिगुणाधिकाः) राशिकूटभेदाः सन्ति।)
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