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मुहूर्तराज ]
[१३ सिद्धच्छाया के विषय में हर्षप्रकाश में
___ "सुह गह लग्गा भावे विरुद्ध दिवसे.....सुलग्गे वि" अर्थ - शुभ ग्रह, लग्न के अभाव में, कुयोगयुक्त अत विरुद्ध दिन में, रविवारादि वारों में क्रमश: सिद्ध छाया लग्न गमन, प्रवेश, प्रतिष्ठा दीक्षादि कार्यों में शुभदायक है। विद्वानों ने छायालग्न को शुभ कार्यों में सिद्धिकर्ता कहा है। इस सिद्ध छायालग्न में शुभ शकुन निमित्त बल विद्यमान रहता है। यदि सुलग्न भी हो तो भी इस सिद्धच्छायालग्न को देखा जा सकता है। नारचन्द्र के भी अनुसार
“तिथिवारङ्ख्शीतांशुविष्ट्याद्यास्यां न चिन्तयेत्” अर्थात् इस सिद्धछाया में तिथि, वार, नक्षत्र, चन्द्र एवं विष्टि दोष का भी विचार नहीं करना चाहिये। अत एव इसकी प्रशंसा नरपति जय चर्यां में भी
नक्षत्राणि तिथि ाराः, ताराश्चन्द्रबलं ग्रहाः ।
दृष्टान्यपि शुभं भावं भजन्ते सिद्धछायया ॥ अन्वय - दुष्टान्यपि नक्षत्राणि, तिथिः, वाराः, ताराः, चन्द्रबलं ग्रहाः एतानि सर्वाणि सिद्धछायया शुभं भावं भजन्ते। ___ अर्थ - नक्षत्र, तिथि, वार, तारा, चन्द्र एवं अन्य ग्रह भले ही दुष्ट अर्थात् अशुभ फलदायी हों, किन्तु वे सभी इस सिद्धिच्छाया के प्रभाव से शुभफलदायी हो जाते हैं। समस्त शुभ कृत्यों में मंगल का त्याग (य. वल्ल.)
राज्याभिषेके वीवाहे सक्रियासु च दीक्षणे ।
__ धर्मार्थकाम कार्ये च शुभा वाराः कुजं विना ॥ अन्वय - राज्याभिषेके, वीवाहे (उद्वाह) सत्क्रियासु, दीक्षणे, धर्मार्थकामकार्ये च कुंज विना (सर्व) वारा: शुभाः (ज्ञेयाः)
राज्यतिलक, विवाह, सत्क्रिया, दीक्षा एवं धार्मिक आर्थिक तथा काम्य कार्यों में मंगल के अतिरिक्त सभी वार शुभ हैं। दिन एवं रात्रि के चौघड़ियों का ज्ञान
"उद्धेगा अमृता रोगा, लाभाः शुभाः चलाः कलाः
सूर्यादिसप्तवाराणां, रात्रौ पंच दिने च षट्" अन्वय - सूर्यादिसप्तवाराणां उद्वेगा अमृता रोगा लाभाः शुभा: चला कलाः इति संज्ञका चतुर्घटिकामानाः (शुभ क्षणा:) “चौघड़िये" रात्रौ पंच दिने च षट् (एवं गणनया)
सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र और शनि इन सात वारों के उद्वेग अमृत रोग लाभ शुभ चल एवं काल संज्ञक चौघड़िये हैं। जिस दिन जो वार हो उस दिन सूर्योदय से उसी वार का चौघड़िया प्रारम्भ होता
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