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________________ ८] [ मुहूर्तराज क्षयतिथि का उदाहरण-रविवार को दशमी दो घड़ी है बाद में एकादशी आती है जो कि ५६ घड़ी तक है और बाद में द्वादशी की आद्य दो घड़ियाँ रविवार का ही स्पर्श करती हैं, इस प्रकार एक ही वार का (रवि का) तीन तिथियों ने स्पर्श किया अत: मध्य की तिथि एकादशी क्षयसंज्ञक कहलाई। आवश्यक कृत्य में तिथिक्षय तिथिवृद्धि दोष का परिहार–वसिष्ठ मत से त्रिधुस्पृशाहयं दोषं सौम्यः केन्द्रगतः सदा । यद्वत्पाचयं हन्ति शून्यशयनव्रतम् ॥ अवमाख्यं तिथेर्दोष केन्द्रगो देवपूजितः । यद्वत्पापचयं हन्ति व्रतं त्रैवर्णिकं यथा ॥ अन्वय - यद्वत् अशून्यशयनव्रतम् हि पापचयं हन्ति तद्वत् सदा केन्द्रगत: सौम्य: त्रिधुस्पृशाह्वयं (तिथिवृद्धयात्मक) दोषं हन्ति। यद्वच्च त्रैवार्षिकं व्रतम् पापचयं हन्ति तद्वत् केन्द्रग: देवपूजितः (गुरुः) अवमाख्यं (तिथिक्षयसंज्ञकं) तिथेोषम् हन्ति। अर्थ - जिस प्रकार अशून्यशयनव्रत निश्चित रूप से अनेक पापों का शमन करता है उसी प्रकार केंद्र स्थित सौम्यग्रह त्रिद्युस्पृशनामक (तिथिवृद्धिसंज्ञक) दोष को नष्ट करता है और जिस प्रकार त्रैवार्षिक व्रत अनेक पापों का नाश करता है उसी प्रकार केन्द्रस्थान में स्थित गुरु तिथि के अवमाख्य (तिथिक्षयसंज्ञक) दोष का शमन करता है। शुभ-अशुभ संज्ञक वार-(मुहूर्तं प्रकाश) चन्द्रसौम्येज्यशुक्राश्च शुभा वाराः शुभे स्मृताः । क्रूरास्तु क्रूरकृत्येषु ग्राह्या भौमार्कसूर्यजाः ॥ __ अन्वय - चन्द्रसौम्येज्यशुक्राः वारा: शुभाः (शुभफलदाः) शुभे स्मृताः, भौमार्कसूर्यजाः (वाराः) क्रूरा: क्रूरकृत्येषु ग्राह्याः। अर्थ - चन्द्र, बुध, गुरु एवं शुक्र ये शुभ वार हैं जो कि शुभकार्यों में लेने योग्य हैं, किन्तु मंगल, सूर्य और शनि ये क्रूरवार (अशुभवार) हैं इन्हें क्रूरकार्यों में ही लेना चाहिये। वारानुसार निषिद्ध तिथियाँ एवं नक्षत्र-(मु.चि.शु.प्र. श्लोक ५ वाँ) नन्दा भद्रा नन्दिकारव्या जया च, रिक्ता भद्रा चैव पूर्णा मृतार्कात् । याम्यं त्वाष्ट्रं वैश्वदेवं धनिष्ठार्यम्णं ज्येष्ठान्त्यं रवेर्दग्लभं स्यात् ॥ अन्वय - अर्कात् (रविवारादरम्य शनिवारं यावत्) क्रमश: नन्दा, भद्रा, नन्दिकारव्या, जया रिक्ता, भद्रा, पूर्णा, चैव (तिथि:) मृता (मृतसंज्ञा) तथैव रवे: (रवितः शनि यावत्) याम्यं त्वाष्ट्रं वैश्वदेवं धनिष्ठा अर्यम्णं ज्येष्ठा अन्त्यं च दग्धभं स्यातू। अर्थ - रविवार से शनिवार तक क्रमश: नन्दा, भद्रा, नन्दा, जया, रिक्ता भद्रा और पूर्णा तिथि मृतसंज्ञक मानी गई हैं। तथैव रवि से शनि तक क्रमश: भरणी, चित्रा, उत्तराषाढ़ा धनिष्ठा, उत्तराफाल्गुनी, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र दग्ध नक्षत्र कहे जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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