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________________ मुहूर्तराज ] अन्वय - सप्ततुरङ्गमे (रवौ) मीने धनुषि राशौ च स्थिते, क्षौरम, अन्नम्, विवाहं, गृहकर्म च न कुर्वीत। अर्थ - जब सूर्य मीन एवं धनु राशि पर हो तब मुण्डन, अन्नप्राशन, विवाह एवं गृहकर्म (निर्माण प्रवेशादि) नहीं करने चाहिए । किन्तु नियतकालिक कार्यों में मलमासादि का दोष नहीं लगता यथा मासप्रयुक्तकार्येषु त्वस्तत्वं गुरुशुक्रयोः । न दोषकृन्मलोमासो गुर्वादित्यादिकं तथा ॥ अन्वय - गुरुशुक्रयोः अस्तत्वं मलो मासो तथा गुर्वादित्यादिकं मासप्रयुक्तकार्येषु दोषकृत् न भवति। अर्थ - मास सम्बन्धी निश्चित कार्यों में गुरु शुक्र के अस्त का, मलमास का एवं गुर्वादित्य का (गुरु एवं सूर्य के समान राशि पर रहने का) दोष नहीं है। इसी प्रकार तेरह दिनों के पक्ष में भी शुभ कार्य नहीं करने चाहिए, जैसा कि ज्योति-निबंध में कहा गया है पक्षस्य मध्य द्वितिथी पतेतां, तदा भवेद् रौरवकालयोगः । पक्षे विनष्टे सकलं विनष्टं, इत्याहुराचार्यवराः समस्ताः । अन्वय - (यदा) पक्षस्य मध्ये द्वितिथी पतेताम् तदा रौरवकालयोगो भवेत्। (तस्मिन् पक्षे किमपि शुभकार्य न कार्यम्) यतः पक्षे विनष्टे सकलं विनष्टं (भवति) इति समस्ता: आचार्यवरा आहुः। अर्थ - जिस पक्ष में दो तिथियों का क्षय होता हो, उस पक्ष को विश्वघस्रनामक पक्ष कहते हैं। इसी को रौरवकालयोग कहा गया है। श्रेष्ठ आचार्यों का कथन है कि पक्ष के नष्ट हो जाने पर सब कुछ नष्ट ही है, अत: उस पक्ष में किसी भी शुभ कार्य को नहीं करना चाहिये। व्यवहारचण्डेश्वर ग्रन्थ में भी ऐसा ही कथन है-यथा त्रयोदशदिने पक्षे विवाहादि न कारयेत् । गर्गादिमुनयः प्राहुः कृते मृत्युस्तदा भवेत् ॥ अन्वय - त्रयोदशदिने पक्षे विवाहादि कर्म कारयेत् तदा कृते मृत्युः भवेत् (इति) गर्गादिमुनयः प्राहुः। अर्थ - तेरह दिनों के पक्ष में गर्गादि मुनियों ने विवाहादि शुभ कार्यों को करने का निषेध किया है यदि उस समय शुभकर्म किये जाएँ तो कर्ता की मृत्यु अथवा उसे मृत्युसदृश कष्ट भोगना पड़ता है। तिथि संज्ञाएँ-(आरम्भ सिद्धि में) नन्दा भद्रा जया रिक्ता पूर्णा चेति त्रिरन्विता । हीना मध्योत्तमा शुक्ला, कृष्णा तु व्यत्यया तिथिः ॥ अन्वय - (शुक्लकृष्णपक्षयोः) त्रिरन्विता (त्रिवारं गणिता) तिथि: नन्दा भद्रा, जया, रिक्ता पूर्णा च इति संज्ञका भवति। शुक्ल पक्षे एतन्नाम्न्यः तिथयः प्रतिपदादि पंचमीपर्यन्ताः हीनाः षष्ठीतः आरभ्य दशमी यावत् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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