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________________ ४३४ ] [मुहूर्तराज वाराणसी । काशी पण्डित सभा द्वारा अगस्तकुण्ड | स्वतंत्र भारत दैनिक जागरण आवश्यकी न वा' विषयपर वाद-विवाद तथा सस्वर श्लोक पाठ प्रतियोगिता आयोजित की गयी। अन्त में वाराणसी (इलाहाबाद) ५ नवम्बर १९८९ संगीत समारोह का भी आयोजन किया गया। काशी पण्डित सभा का अधिवेशन वाराणसी। काशी पण्डित सभा द्वारा अगस्तकुण्ड स्थित शारदा भवन में रविवार को अपरान्ह २ बजे विशेष अधिवेशन आयोजित किया गया है । इस अधिवेशन में वाराणसी, १० सितम्बर १९८९ (२) ज्योतिष शास्त्रवेत्ता मुनिश्री जयप्रभ विजय (मध्य प्रदेश) संस्कृत बिना भारतीय संस्कृति की रक्षा नहीं का अभिनन्दन एवं उन्हें मानपत्र भेंट किया जायेगा। वाराणसी ९ सितम्बर । अगस्न्य कुण्ड स्थित शारदा वारणसी बुधवार, १३ सितम्बर १९८९ सौर २८ भाद्रपद सं. २०४६ वि. भवन में ६१ वें श्री गणेशोत्सव के अवसर पर आयोजित विद्वत गोष्ठी में विद्वानों ने कहा कि देववाणी संस्कृत ही भारतीय संस्कृति के मूल में है और इसके बिना रक्षा सम्भव नही। गोष्ठी के विशिष्ठ वक्ता भारतीय संस्कृति एवं जयोतिष शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान मुनिश्री जय प्रभ विजय बिहार में सर्वाधिक प्रसारित जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति की जड़ इतनी मजबूत वाराणसी, गोरखपुर, इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ,आगरा,पटना,रांची, जमशेदपुर तथा धनबाद से प्रकाशित संस्कृत भाषा के ही कारण है। यहां दतुर्मास्य व्रत कर रहे मुनिश्री ने काशी की महत्ता की भी चर्चा की और कहा संस्कृत के बिना भारतीय कि काशी ने संस्कृत संस्कृति और परम्पराओं को बराबर संस्कृतिकी रक्षा असम्भव जीवंत बनाकर रखा। __गोष्ठी में भाग लेने वालों में पं. करुणापति त्रिपाठी अगस्तकूण्ड स्थित शारदाभवन में गणेशोत्सवके | | पं. राम प्रसाद त्रिपाठी पं. देवस्वरुप मिश्र. पं. बटुकनाथ अवसरपर रविवारको आयोजित विद्वत गोष्ठी में विद्वानों शास्त्री खिस्ते. पं. राम यत्न शुक्ल. पं. वासुदेव द्विवेदी ने कहा कि संस्कृत ही भारतीय संस्कृति का मूल है । पं. वदिकृष्ण त्रिपाठी पं. श्री राम पाण्डेय प्रमुख थे। इसके बिना शास्त्रों की रक्षा सम्भव नहीं है। इस अवसर पर मुनिश्री जय प्रभजी ने सभी मूर्थन्य __ गोष्ठी में ज्योतिषशास्त्र के प्रमुख विद्वान श्री जयप्रभ | विद्वानों का और विभिन्न प्रतियोगिताओं में श्रेष्ठ आये विजयजी ने कहा कि संस्कत भाषा के कारण ही भारतीय | बच्चों को पुरस्कार प्रदान किया । उन्होंने ऐसी संस्कृति की जड़ इतनी मजबूत है। काशी में इन दिनों प्रतियोगिताओं को देशभर में आयोजित किये जाने पर चातुर्मास्य व्रतकर रहे श्री विजयजी ने कहा कि काशी के बल दिया जिससे छात्र-छात्राओं को समान रूप से आगे मूर्धन्य विद्वानों ने संस्कृति एवं शास्त्रों की परम्परा को बढ़ने की प्रेरणा मिले। आज भी जीवन्त बनाकर रखा हैं। प्रतियोगिताओं के पुरस्कार इस प्रकार दिये गए यहां का एक-एक विद्वान भारतीय संस्कृति का साक्षात सरस्वती श्लोक प्रतियोगिता में कु. अशुल श्रीवास्तवप्रतीक है । इस अवसर पर राष्ट्रोत्रत्येक नार शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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