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________________ ४१८ ] [ मुहूर्तराज फल, विधान प्रकरण सेवधि प्रकरण परचक्रामण, भोजन प्रकरण, ग्राम प्रकरण, पुत्र प्रकरण, रोग, प्रकरण, जाया प्रकरण, सुरत प्रकरण, गमनागमन, गज अश्वा खंग आदि चक्रयुद्ध प्रकरण, संधिविग्रह, पुष्पनिर्णय स्थानदोष, जीवित मृत्युफल, प्रवहण प्रकरण, वृष्टि प्रकरण, अर्द्धकाण्ड, स्त्रीलाभ प्रकरण आदि।' ग्रन्थ के एक पद्य में कर्ता ने अपना नाम इस प्रकार गुम्फित किया है: श्री हेलाशालिनां योग्यमप्रभीकृतभास्करम् । भसूक्ष्मेक्षिकया चक्रेऽरिभिः शास्त्रमदूषितम् ॥ इस श्लोक के प्रत्येक चरण के आदि के दो वर्षों में 'श्री हेमप्रभसूरिभिः' नाम अन्तर्निहित है। जोइसहीर (ज्योतिषहीर) : 'जोइसहीर' नामक प्राकृत भाषा में ग्रन्थ कर्ता का नाम ज्ञात नहीं हुआ है। इसमें १८७ गाथाएँ हैं। इस ग्रन्थ के अन्त में लिखा है कि 'प्रथमप्रकिर्ण समाप्तम्' इससे मालुम होता है कि यह ग्रन्थ अधूरा है। इसमें शुभाशुभ तिथि ग्रह की सबलता, शुभ घड़िया, दिन शुद्धि, स्वर ज्ञान, दिशा शुल, शुभाशुभ योग, वृत, आदि ग्रहण करने का मुहूर्त, क्षोर कर्म का मुहूर्त और ग्रह फल आदि का वर्णन है। ज्योतिषसार (जोइसहीर): ___ 'ज्योतिषसार' जोइसहीर नामक ग्रन्थ की रचना खरतर गच्छीय उपाध्याय देवतिलक के शिष्य मुनि हीरकलश ने वि. सं. १६२१ में प्राकृत में की है। इसमें दो प्रकरण है। इस ग्रन्थ की हस्त लिखित प्रति बम्बई के माणकचन्दजी भण्डार में है। ___मुनि हीरकलश ने राजस्थानी भाषा ‘ज्योतिष्हीर' या 'हीरकलश' ग्रन्थ की रचना ९०० दोहों में की है। जो साराभाई नवाब (अहमदाबाद) ने प्रकाशित किया है। इस ग्रन्थ में जो विषय निरूपित है, वही इस प्राकृत ग्रन्थ में भी निबिद्ध है। मुनि हीरकलश की अन्य कृतियाँ इस प्रकार हैं: १, अठारा नाता सज्झाय, २. कुमति विध्वंस चौपाई, ३. मुनिपति चौपाई, ४. सोल स्वप्न सज्झाय, ५. आराधना चौपाई, ६. सम्यक्त्व चौपाई, ७. जम्बु चौपाई, ८. मोती कपास्या संवाद, ९. सिंहासन बत्तीसी, १०. रत्नचूढ़ चौपाई, ११. जीभ दांत संवाद, १२. हियाल, १३. पंचाख्यान, १४. पंचसति दुपदी चौपाई, १५. हियाली । ये सब कृतियां जूनी गुजराती है अथवा राजस्थानी में है। १. यह ग्रन्थ एस्ट्रोलाजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट लाहौर से हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित हुआ है। पण्डित भगवानदास जैन ने 'जैन सत्य प्रकाश वर्ष १२ अंक १२ में अनुवाद में बहुत भूलें होने के सम्बन्ध में 'लोक्य प्रकाश का हिन्दी अनुवाद' शीर्षक लेख लिखा है। यह ग्रन्थ पण्डित भगवानदास जैन द्वारा हिन्दी में अनुवादित होकर नरसिंह प्रेस कलकत्ता से प्रकाशित हुआ है। २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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