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________________ मुहूर्तराज ] [४१५ जातक दीपिका पद्धति : कर्ता ने इस ग्रन्थ की रचना कई प्राचीन ग्रन्थकारों की कृतियों के आधार पर की है। इसमें वार स्पष्टीकरण, ध्रुवदिनयन, भौमादीशबीज ध्रुवकरण लग्न स्पष्टीकरण, होरा करण, नवमांश, दसमांश, अर्न्तदशा, फलदशा आदि विषय पद्य में है। कुल ९४ श्लोक है। इस ग्रन्थ के कर्ता का नाम और रचना समय अज्ञात जन्म प्रदीप शास्त्र : “जन्म प्रदीप शास्त्र' के कर्ता कौन है और ग्रन्थ कब रचा गया यह अज्ञात है। इसमें कुण्डली के १२ भुवनों के लग्नेश के बारे में चर्चा की गई। ग्रन्थ पद्य में है। केवलज्ञान होरा : दिगम्बर जैनाचार्य चन्द्रसेन ने ३-४ हजार श्लोक प्रमाण 'केवलज्ञान होरा' नामक ग्रन्थ की रचना की है। आचार्य ने ग्रन्थ के आरम्भ में कहा है : होरा नाम महा िवक्तव्यं च भवद्धितम् । ज्योतिज्ञनिकरं सारं भूषणं बुधपोषणम् ॥ होरा के कई अर्थ होते हैं। १. होरा याने ढाई घटी अर्थात् एक घण्टा। २. एक राशि या लग्न का अर्द्ध भाग। ३. जन्म कुण्डली। ४. जन्म कुण्डली के अनुसार भविष्य कहने की विद्या अर्थात् जन्म कुण्डली का फल बताने वाला शास्त्र। यह शास्त्र लग्न के आधार पर शुभ अशुभ फलों का निर्देश करता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में हेमकरण, दाम्यकरण, शिला प्रकरण, मृतिका प्रकरण, वृक्ष प्रकरण, कास-गुल्मवल्कल तृण-रोम-चर्मपट पट प्रकरण, संख्या प्रकरण, नष्ट द्रव्य प्रकरण, निर्वाह प्रकरण, अपत्यप्रकरण, लाभलाभ प्रकरण, स्वर प्रकरण, स्वप्न प्रकरण, वास्तुविद्या प्रकरण, भोजन प्रकरण, देहलोदीक्षा प्रकरण, अंजनविद्या विद्या प्रकरण, विष विद्या प्रकरण, आदि अनेक प्रकार के प्रकरण है। ये प्रकरण कल्याण वर्मा की 'सारावली' से मिलते-जुलते हैं। दक्षिण में रचना होने से कर्नाटक प्रदेश के ज्योतिष का इस पर काफी प्रभाव है। बीच-बीच में विषय स्पष्ट करने के लिये कन्नड़ भाषा का भी उपयोग किया गया है। चन्द्रसेन मुनि ने अपना परिचय देते हुए इस प्रकार कहा हैं : आगमोः सद्दशो जैनः चन्द्रसेनसमो मुनिः । केवली सदृशी विद्या दुर्लभा सचराचरे ॥ यह ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुआ है। १. पुराविदैयदुक्तानि, पद्यान्यादाय शोभनम्। संभोल्य सोमयोग्यानि लेखयि (खि) ष्यामि शिशोः मुदे॥ इसके ५ पत्रों की हस्तलिखित प्रति अहमदाबाद के ला. द. भारतीय विद्या मन्दिर में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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