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________________ ३९६ ] [ मुहूर्तराज राशि अंक २ हैं अतः क्रमिक दो चरखण्डों का योग ६० + ४८ = १०८ हुआ । सायनसूर्य के अंशादिकों को अग्रिम चरखण्ड २० से गुणा करके ३० का भाग देने पर लब्धि फल ११।४८ । ४३ स्वल्पान्तर से १२ पल हुए, इन्हें उक्त चरखण्ड योग १०८ में जोड़ने पर १०८ + १२ = १२० चरपल, इनकी घटियाँ २ हुईं। चूंकि सायनसूर्य ६ राशि से अल्प है अतः इन २ घटियों को १५ में जोड़ने से १५ + २ = १७ घटी दिनार्थ और ३४ घटी दिनमान तथा ६० ३४ = २६ घटी रात्रिमान । इसमें ५ का भाग लगाने पर ५ घं. १२ मिनट जोधपुर का स्थानीय सूर्योदयकाल हुआ। इसमें मध्यमान्तर मिनट संस्कार ३८, तथा वेलान्तर संस्कार मिनिट ५, को जोड़ने से ५ घं. १२ मिनिट + ० घं. ४३ मिनट (३८ + ५ = ४३) = ५ घं. ५५ मिनट स्टेण्डर्ड सूर्योदयकाल उक्त दि. ६।७।८२ का हुआ। अयनांशसाधनप्रकार - (बृ. ज्यौ . सार) ऊपर दिनमान ज्ञानोपाय में अयनांशादिकों को जो चर्चा की गई है, तदुपरि यह प्रश्न स्वाभाविक रूपेण उठता है कि अयन के अंशादिकों को किस प्रकार ज्ञात किया जाता है। तो इसके उत्तर में निम्न उल्लेख प्रस्तुत है अर्थ इष्ट शकवर्षों में से ४२१ घटाकर शेष संख्या को ९ से गुणित कर १० से भाग दे जो लब्धि आए वे अयनकलाएं होती हैं, एवं तत्कालिक स्पष्टसूर्य को अंशात्मक बनाकर ३ से गुणा करके २० का भाग देने पर लब्धि अयन विकलाएँ होती हैं, इन्हें पूर्वागत कलाओं के नीचे की विकलाओं में जोड़कर ६० का भाग लगाने से अयनांश कला विकलाएं होती हैं। एकद्विवेदोनशका नवघ्ना दिग्भिर्हताश्चायनलिप्निकास्ताः । अंशीकृताकत् ित्रिगुणान्नखाप्ततुल्याभिरेवं विकलाभिराढ्याः ॥ ९ उदाहरण - दिनमानोक्त उदाहरणानुसार शकवर्षों १९०४ में से ४२१ घटाने पर १४८३ शेष रहे, इन्हें गुणा करने पर १८४३ x 9 = १३३४७ हुए, इनमें १० का भाग देने पर १३३४ क. ४२ वि. हुई इन्हें एक ओर रख दिया । ततः उस दिन के प्रातः कालिक स्पष्ट सूर्य २।२०।२।१ के अंशादिक ८०।२।१ को ३ से गुणा किया तो २४० । ६ । ३ हुए, इनमें २० का भाग देने पर १२।१८ वि. आईं इन विकलाओं को पूर्वागत क. वि. में जोड़ा गया = १२ १३३४ क. ५४ वि., इनमें ६० का भाग देने पर २२ अं. १४ क. ५४ वि. हुई यही अंशकला विकलात्मक अयन हुए । १३३४ ४२ + ० - से - यहाँ वार प्रवृत्ति में पूर्व पश्चिम देशान्तर (मध्यरेखा से) की तथा दिनमान में तत्तत्स्थानीय पलभाओं की चर्चा की गई है अतः कतिपय मुख्य-मुख्य नगरों के अक्षांश, पलभा, मध्यरेखा से देशान्तर तथा रेल्वे स्टेण्डर्ड समय से मध्यान्तर मिनटें, आदि बिन्दुओं के विषय में जानकारी के लिए नीचे एक सारणी दी जाती है इसे "देशान्तर सारणी” नाम से व्यवहृत किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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