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________________ ३९० ] [ मुहूर्तराज कतिपय अन्यान्य योगक) महाडल योग एवं भ्रमण योग- (बृहज्यौतिषसार) यात्रा में निषिद्ध खेतोऽब्जभोमिति नगावशेषिता द्वयगा । महाडलो न शस्यते त्रिषण्मिता भ्रमो भवेत् ॥ अर्थ - सूर्यनक्षत्र से चन्द्रनक्षत्र पर्यन्त गणना करके आगत संख्या में ७ का भाग देने पर शेष २ या ७ या ० रहें तो महाडल योग एवं ३ या ६ शेष रहें तो भ्रमण योग होता है। ये दोनों यात्रा में निषिद्ध हैं। (ख) हिम्बर योग- (बृहज्यौतिषसार) यात्रा में प्रशंसनीय शशांकभं सूर्यभतोऽत्र गण्यं पक्षादितिथ्या दिनवासरेण । युतं नवाप्तम् नगशेषकं चेत् स्याद्धिम्बरं तद्गमनेऽतिशस्तम् ॥ अर्थ - सूर्यनक्षत्र से चन्द्रनक्षत्र तक गणना करके उस संख्या में शुक्ल प्रतिपदा से गणित तिथि रवि से गणित वार संख्या जोड़कर ९ का भाग दें, यदि शेष ७ बचे तो हिम्बर नामक योग कहा गया है जो कि योत्रा में अति प्रशस्त है। (ग) घबाड योग- (बृहज्यौतिषसार) यात्रा में अतीव प्रशस्त सूर्यभाद् गणयेच्चान्द्रं त्रिगुणं तिथिसंयुतम् । नवभिस्तु हरेद्भागं विशेष स्याद् घबाडकम् ॥ __ अर्थ - सूर्य नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र तक गिनकर उस संख्या को तिगुना करके उसमें वर्तमान तिथि संख्या को जोड़े फिर ९ का भाग दें यदि शेष ३ रहे तो घबाड योग होता है, यह यात्रा में हिम्बर से भी श्रेष्ठ । (घ) टेलक-गौरव आदि योग- (बृहज्यौतिषसार) सूर्यभाद् गणेशच्चान्द्रं तिथिवारं च मिश्रितम् । सप्तभिस्तु हरेद्भागं पञ्चशेषं तु टेलकम् ॥ सूर्यभाद् गणयेच्चान्द्रं तिथिवारं च मिश्रितम् । अर्कसंख्यै हरेद्भागं नवशेषं तु गौरवम् ॥ अर्थ - सूर्य नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र तक की संख्या में वर्तमान तिथि और वार संख्या जोड़कर ७ से भाग देने पर यदि शेष ५ रहे तो टेलक योग होता है। तथा १२ से भाग देकर शेष तो गौरव नामक योग जानें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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