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________________ २७२ ] [ मुहूर्तराज भयात भयात की पलें = २३ x ६० = १३८० + २ + १३८२ प. २२ ४० ११५६६७, भभोग भभोग की पलें = ६७ x ६० = ४०२० + ३६ = ४०५६ प. २२ | १४ | ३६|| अब भयातपलों १३८२ को ८०० से गुणा करने पर = १३८२ x ८०० = ११०५६०० विपलें हुईं इनमें भभोग को पलों ४०५६ का भाग देने पर ४०५६) ११०५६०० (२७२ ८११२ २९४४० २८३९२ १०४८० ८११२ २३६८ X ६० चन्द्रफल २७२ वि. = घ. एवं ३५ क. = प. आया अर्थात् ४ अं. ३२ वि. ३५ क. अब चूंकि ज्येष्ठा नक्षत्र गत हुआ है जिसका कि क्रमांक अश्विनी से गणना करने पर १८ आता है और चरण १८ x ४ = ७२ होते हैं। इन चरणों में ९ का भाग देने पर ८/०/०/० राश्यादि आये। इनमें चन्द्रफल ४ अं. ३२ क. ३५ वि. का योग किया तो ८/४/३२/३५ यह चन्द्र स्पष्ट हुआ। ४०५६) १४२०८० (३५ १२१६८ २०४०० २०२८० १२० चन्द्रगति साधन प्रकिया ___ एक नक्षत्र का भोगमध्यमान ६० घटिकाएँ होता है और यदि कोई नक्षत्र ६० घटीमान का हो तो उसकी गति ८०० कला होती है इससे यह सिद्ध होता है कि यदि नक्षत्रभोग ६० घटी से कम होगा तो गति ८०० कलाओं से अधिक और यदि नक्षत्र भोग ६० घटी से अधिक होगा तो चन्द्रगति ८०० से कम होगी। ___ यहाँ प्रस्तुत मूल नक्षत्र का भोग ६७ घ. ३६ पलें अथवा ४०५६ प. हैं अतः यह स्वतः सिद्ध है कि चन्द्रगति ८०० कलाओं से कम होगी। चन्द्रगति मध्यमान ८०० कलाओं (घटियों) की अनुकलाएँ (विपलें) ८०० X ६० x ६० = २८८०००० हुईं इनमें भभोग की उक्त पलों ४०५६ का भोग देने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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