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________________ २४० ] [ मुहूर्तराज प्रतिष्ठा वार विचार सोमो बृहस्पतिश्चैव, शुक्रश्चैव तथा बुधः । एते वाराः शुभाः प्रोक्ताः प्रतिष्ठायज्ञकर्मणि ॥ अर्थ - प्रतिष्ठा एवं यज्ञकर्म में सोम, गुरु, शुक्र एवं बुध ये वार शुभ हैं। प्रतिष्ठा के विषय में कुछ अन्यान्य बातें रोहिण्युत्तरपौष्णवैष्णवकरादित्याश्विनीवासवा नुराधैन्दवजीवभेषु गदितं विष्णोः प्रतिष्ठापनम् । पुष्यश्रुत्यभिजित्सु चेश्वरकयोः वित्ताधिपस्कन्दयोः । मैत्रे तिग्मरुचेः करे निऋतिभे दुर्गादिकानां शुभम् ।। अन्वय - विष्णोः प्रतिष्ठापनम् रोहिण्युत्तरपौष्णवैष्णवकरादित्याश्विनी वासवानुराधैन्दवजीवभेषु ईश्वरकयोः (महादेवब्रह्मणोः) पुष्यश्रुत्यभिजित्सू, वित्ताधियस्कन्दयोः मैत्रे, तिग्भरुचेः (सूर्यस्य) करे (हस्तनक्षत्रे) तथा दुर्गादिकानाम प्रतिष्ठायनम् निऋतिभे (मूल) शुभम् गदितम्। ___ अर्थ - श्री विष्णु की प्रतिष्ठा रोहिणी, तीनों उत्तरा, रेवती, श्रवण, हस्त, पुनर्वसु, अश्विनी, धनिष्ठा, अनुराधा, मृगशिर तथा पुष्य में, महादेव और ब्रह्मा की प्रतिष्ठा पुष्य, श्रवण और अभिजित् में, कुबेर तथा कार्तितस्वामी की प्रतिष्ठा अनुराधा में, सूर्य की प्रतिष्ठा हस्त में, तथा दुर्गा आदि देवताओं की प्रतिष्ठा मूल नक्षत्र में करनी शुभ है। प्रतिष्ठा में लग्न- (वसिष्ठ) स्थाप्यो हरिर्दिनकरो मिथुने महेशो , नारायणश्च युवतौ घटके विधाता । देव्यो द्विमूर्तभवनेषु निवेशनीयाः , क्षुद्राश्चरे स्थिरगृहे निखिलाश्च देवा ॥ अन्वय - मिथुने हरिः (विष्णुः) दिनकरः (सूर्यः) महेशः (महादेवः) स्थाप्यः युवतौ कन्यायां च नारायणः (कृष्णः) स्थाप्यः। घटके (कुंभे) विधाता ब्रह्मा, द्विमूर्तभवनेषु (द्विस्वभावलग्नेषु) देव्यः स्थाप्याः, चरे (चरलग्नेषु मेष,कर्कतुलामकरेषु) क्षुद्राः (योगिस्यः) निवेशनीयाः तथा स्थिरगृहे (वृषसिंह-वृश्चिककुंभेषु) च निखिलाः देवाः स्थाप्याः। अर्थ - मिथुन लग्न में विष्णु सूर्य एवं महादेव की, कन्या लग्न में श्रीकृष्ण की, कुंभ लग्न में ब्रह्मा की द्विस्वभाव लग्नों में (३, ६, ९, १२) देवियों की, चर लग्नों में (१, ४, ७, १०) योगिनियों की एवं स्थिरलग्नों (२, ५, ८, ११) सभी देवों की प्रतिष्ठा करनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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