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मुहूर्तराज ]
[ २३७
अर्थ - चैत्र, फाल्गुन, वैशाख ज्येष्ठ एवं माघ ये मास देवताओं की प्रतिष्ठा में शुभ हैं। और भी(मत्स्य पु.)
अन्वय
कतिपयेषामाचार्याणां मतेन श्रावणे लिङ्गम ( शिवलिङ्गम) आश्विने जगदम्बिकाम् (देवीम्) मार्गशीषे हरिम् (विष्णुम् ) पौषे सर्वान् देवान् स्थापयेत् ।
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अर्थ कतिपय आचार्यों का कथन है कि श्रावण मास में शिवजी की आसोजमास में देवी की मार्गशीर्ष में विष्णु की एवं पौष में सभी देवताओं की प्रतिष्ठा करना शुभ है ।
आरंभसिद्धि में प्रतिष्ठार्थ संक्रान्ति एवं मास
श्रावणे स्थापयेल्लिङ्ग आश्विने जगदाम्बिकाम् । मार्गशीर्षे हरिं चैव सर्वान् पौषेऽपि केचन ॥
अन्वय - विवाहे, दीक्षायां प्रतिष्ठायां च रवौ मकरकुंभस्थे अथवा रवौ मेषादित्रयगेऽपि (मेषवृषमिथुनराशिगते) च लग्नम् (मुहूर्तम्) शुभम् ज्ञेयम् ।
लग्नं विवाहे दीक्षायां प्रतिष्ठायां च शस्यते । रवौ मकरकुंभस्थे मेषादित्रयगेऽपि च ॥
अर्थ - विवाह में दीक्षा में एवं प्रतिष्ठा में मकर, कुंभ, मेष, वृष एवं मिथुन संक्रान्तियाँ ग्राह्य हैं। रत्नमाला ग्रन्थ के भाष्य में "विवाहादौ स्मृतः सौरः" अर्थात् विवाहादि कार्यों में सौरमास ग्राह्य है ऐसा कहे जाने के कारण इनमें संक्रान्ति मास ( सौरमास ) बतलाए गए। अब नीचे चान्द्रमास बतलाए जा रहे हैंप्रतिष्ठा में चान्द्रमास - ( आ.सि.)
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अन्वय
माघफाल्गुनयोः राध (वैशाख) ज्येष्ठयोश्चापि मासयोः विवाहादि कार्याणां कृते लग्नं मुहूर्तम् श्रेयः (शुभदम्) इति परे तु कतिपये आचार्यास्तु कार्तिकभार्गयोः कार्तिके मार्गशीर्षेऽपि शुभम् इति आहुः।
माघफाल्गुनयो राधज्येष्ठयोश्चापि मासयोः । लग्नं श्रेयः परे त्वाहुस्तद्वत् कार्तिकमार्गयोः
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अर्थ - अधिकतर आचार्यों का मत है कि विवाहादि में माघ, फाल्गुन वैशाख और ज्येष्ठ ये मास ग्रहण योग्य हैं पर कतिपय आचार्य इनके साथ-साथ कार्तिक एवं मार्गशीर्ष को भी ग्राह्य कहते हैं ।
विवाहा कार्य की भांति प्रतिष्ठा कर्म में भी जन्ममास, जन्मतिथि एवं जन्मनक्षत्र त्याज्य हैं— जन्ममासतिथि एवं नक्षत्रों की त्याज्यता - (आ.सि.)
ज्येष्ठापत्यस्य न ज्येष्ठे मासि स्यात् पाणिपीडनम् । न पुनस्त्रयमप्येतत् मासाहर्भेषु
जन्मनः ॥
उक्त तीनों कार्य जन्ममास, जन्मनक्षत्र एवं जन्मतिथि में नहीं करने चाहिएं।
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