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[ मुहूर्तराज वामार्क ज्ञान, एवं तिथिपरत्व पूर्वादिदिग्द्वार भवन प्रवेश- (मु.चि.गृ.प्र. ५)
वासो रवि मत्युसुतार्थलाभतोऽके पञ्चभे प्राग्वदनादिमन्दिरे ।
पूर्णातिथौ प्राग्वदने गृहे शुभो नन्दादिके याम्यजलोत्तरानने ॥ अन्वय - गृहप्रवेशकुण्डल्याम् मृत्युसुतार्थलाभतः (अष्टमपञ्चमद्वितीयैकादशस्थानेभ्य) पञ्चभेऽर्के (पञ्चसु । स्थानेषु स्थिते सूर्ये सति) प्राग्वदनादिमन्दिरे पूर्वमुखदक्षिणमुखपश्चिममुखोत्तरमुखेषु गृहेषु प्रवेशकरणयोग्येषु प्रवेशकर्तुः (गृहपतेः) वामः (वामपार्श्वस्थः) रवि ज्ञातव्यः। यथा पूर्वमुखे गृहे प्रवेष्टव्य प्रवेशलग्नात् ८, ९, १०, ११ एवं १२ स्थानगो रविः प्रवेशकर्तुः वामः। दक्षिणमुखे गृहे प्रवेशलग्नात् ५, ६, ७, ८ एवं ९ स्थानगतः रविः तस्य वामः। पश्चिममुखे गृहे प्रवेशलग्नात् २, ३, ४, ५ एवं ६ स्थानगः रविः प्रवेष्टुवभिः, तथा चोत्तरमुखे प्रवेष्टव्ये गृहे ११, १२, लग्ने २ एवं स्थानगः रविर्वाभो भवति एवं च रविं वामं कृत्वा गृहम् आविशेत्।
__ अर्थ - गृहप्रवेशकुण्डली में अष्टम स्थान से ५ स्थानों में पञ्चमस्थान से ५ स्थानों में द्वितीय स्थान से ५ स्थानों में और एकादश स्थान से ५ स्थानों में स्थित सूर्य क्रमशः पूर्वमुख, दक्षिणमुख, पश्चिममुख एवं उत्तरमुख गृह में प्रवेश करते समय प्रवेशकर्ता के वाम भाग में रहता है जो कि प्रवेश करते समय शुभ माना गया है। तात्पर्य यह है कि पूर्वमुखगृहप्रवेश के समय प्रवेशकुण्डली में ८, ९, १०, ११ और १२ स्थानों में दक्षिणमुखगृहप्रवेश के समय प्रवेशलग्न से ५, ६, ७, ८ और ९ स्थानों में पश्चिममुखगृहप्रवेश के समय प्रवेशलग्न से २, ३, ४, ५ और ६ स्थानों में और उत्तरमुखगृहप्रवेश के समय प्रवेशलग्न से ११, १२, लग्न, २ और ३ स्थानों में स्थित रवि वामस्थ कहलाता है।
मनुष्य-जीवन, शभ सामग्री तथा धनवैभव ये तीनों बातें प्रत्येक प्राणी को पर्व पण्योदय से ही प्राप्त होती हैं। इनके मिल जाने पर जो व्यक्ति इनको यों ही खो देता है वह सछिद्र नौका के समान है, जो स्वयं डूबती है और अपने में बैठने वालों को भी डुबा देती है। जो मनुष्य अपने जीवन को धर्मकरणी से व्यतीत करता है उसका जीवन चिन्तामणिरल के समान सार्थक है और इसी के द्वारा स्वपर का आत्म-कल्याण हो सकता है।
- श्री राजेन्द्रसूरि
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