SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०६ ] [ मुहूर्तराज गेहारम्भ में कुछ विशेष- (दैवज्ञ वल्लभ में) गुरुर्लग्ने जले शुक्रः स्मरेज्ञः सहजे कुजः । रिषौ भानुर्यदा वर्षशतायुः स्याद्गृहं तदा ॥ सितो लग्ने गुरुकेन्द्रे रवे बुधो रविरायगः । निवेशे यस्य तस्यायुः वेश्मनः शरदां शतम् । स्वः चन्द्रे विलग्नस्थ जीवे कंटकवर्तिनि । भवेल्लक्ष्मीयुते धाम्नि भूरिकालमवस्थितिः ॥ __ अर्थ - गेहारम्भ के समय के लग्न में गुरु हो, जल (दशम स्थान) में शुक्र हो, स्तर (सप्तम स्थान) में बुध हो सहज (तृतीय) में मंगल हो और सूर्य रिपु (षष्ठ स्थान) में हो तो वह घर सौ वर्षों की आयुवाला होता है। लग्न में शुक्र, केन्द्र में गुरु, दशम में बुध, लाभ (११ वें) में सूर्य जिस घर के आरम्भकाल की लग्नकुण्डली में हों उस घर की आयु सौ वर्षों की होती है। चन्द्र स्वनक्षत्रीय होकर लग्न में हों, गुरु कंटक (१, ४, ७, १०) स्थानों में हो तो वह घर लक्ष्मीयुक्त रहता है एवं उसमें चिरकाल तक निवास रहता है। वह सूना नहीं रहता। बलवद्लग्न में प्रारब्ध घरों की आयु- (मु.चि.वा.प्र.श्लो. २२ वाँ) जीवार्कविच्छुक्रशनैश्चरेषु लग्नारिजामित्रसुखत्रिगेषु । स्थितिः शतं स्याच्छरदां सित्ताक्ररिज्ये तनुत्र्यङ्गसुते शतं द्वे ॥ अन्वय - अत्र दीर्घायुगेहयोगद्वयम्, यथा लग्नारिजामित्रसुखत्रिगेषु जीवार्क विच्छुक्रशनैश्चरेषु सत्सु अर्थात् लग्ने जीवे, षष्ठेऽर्के, सप्तमे विदि (बुधे) चतुर्थे शुक्रे, तृतीये च शनैश्चरे एवं विधायां गेहारम्भकुण्डल्यां सत्यां यस्य गेहस्यारम्भः तस्य स्थितिः शरदां (वर्षाणाम्) शतं स्यात (तद्गृहं शतायुभवेत्) अथ तनुत्र्यङ्गसुते (लग्नतृतीयषष्ठपंचमस्थानेषु) सिताकरिज्ये (शुक्रसूर्ये भौमगुरुषु स्थितेषु) अर्थात् लग्ने शुक्रे स्थिते, तृतीये रवौ स्थिते, षष्ठे भौमे स्थिते पञ्चमे च गुरौ स्थिते एवं विधे योगे प्रारब्धस्य गृहस्य आयुः शतद्वयवर्षप्रमाणं स्यात्। अर्थ - यहाँ दीर्घकाल तक स्थित रहने वाले घरों के दो योग बतलाये हैं पहला-यदि लग्न में गुरु हो, छठे सूर्य हो, सातवें बुध हों, चौथे शुक्र हो और तीसरे स्थान में शनि हो- ऐसा योग हो तो उस योग में प्रारब्ध गृह की आयु १०० वर्षों की होती है। दूसरा-लग्न में शुक्र, तीसरे स्थान में सूर्य, छठे स्थान में मंगल और पाँचवें स्थान में गुरु हो-ऐसे योग में प्रारम्भ किये गये घर की आये २०० वर्षों की होती है। लक्ष्मीयुक्त गृहों के तीन योग- (मु.चि.वा.प्र. श्लो. २४ वाँ) स्वोच्चे शुक्रे लग्नगे वा, गुरौ वेश्मगतेऽथवा । शनौ स्वोच्चे लाभगे वा लक्ष्या युक्तं चिरम् गृहम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy