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________________ २०० ] [ मुहूर्तराज ___अर्थ - कन्यार्क, तुलार्क और वृश्चिकार्क में वत्सोदय पूर्व में, धनुर्क, मकरार्क, कुंभार्क में वत्सोदय दक्षिण में मीनार्क, मेषार्क और वृषमार्क में वत्सोदय पश्चिम में एवं मिथुनार्क, कर्कार्क और सिंहार्क में वत्सोदय उत्तर में होता है। इस वत्सोदय को सामने रखकर प्रयाण, वास्तुद्वार, जिनेश्वरादि प्रतिमाओं का धनिक के घर में प्रवेश आदि नहीं करने चाहिए। वत्सरूपम्-(ना. चं. टिप्पण) वपुरस्य शतं हस्ताः श्रृङ्गयुगं षष्टिसंयुता त्रिशती । पन्नाभिपुच्छशिरसां भूप नव नि शर' करमानम् ॥ अर्थ - इस वत्स का शरीर सौ हाथ ऊँचा, दोनों सींग ३६० हाथ लम्बे, पैर सोलह हाथ, नाभि नौ हाथ, पूंछ तीन हाथ और मस्तक ५ हाथ प्रमाण के हैं। वत्सचारसम्बन्धी विशेष- (ज्यो. सार) पंच' दिक् तिथि सत्रिंश तिथि, दिक् शर वासरान् । वत्सस्थितिः दिक्चतुष्के प्रत्येकं सप्तभाजिते ॥ अर्थात्- चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा के सात-सात भाग करने चाहिए उनमें प्रथम भाग में वत्सस्थिति ५ दिनों तक द्वितीय भाग में १० दिनों तक, तृतीय भाग में १५ दिनों तक चतुर्थ भाग में ३० दिनों तक ५ भाग में १५ दिनों तक षष्ठ भाग में १० दिनों तक और सातवें भाग में ५ दिनों तक रहती है। इस प्रकार ५ + १० + १५ + ३० + १५ + १० + ५ = ९० (३ मास) दिनों तक एक दिशा में वत्स रहता है, फिर दूसरी तीसरी और चौथी दिशाओं में भी इसी क्रम से वत्सस्थिति रहती है। स्पष्टतया ज्ञानार्थ निम्नांकित चक्र देखिए। वत्सचार एवं तत्स्थिति बोधक चक्र ५ / ५ । १० । १५ । ३० । १५ । १० कन्या, तुला, वृश्चिक \५ | १० |१५ |३० १५ | १० मिथुन, कर्क, सिंह धनु, मकर, कुम्भ ३० १५ | १० nahate १० १५ / १० ३० । १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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