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________________ मुहूर्तराज ] [१८३ अर्थ - चन्द्रमा के सम्मुख रहते आरंभ किया हुआ घर रहने योग्य नहीं होता तथा पीछे रहते आरंभ किया हुआ घर केवल चोरों द्वारा सेंध लगाकर वहाँ से धनापहरण करने योग्य ही होता है अत: पुर:स्थित एवं पृष्ठस्थित चन्द्र का त्याग करना चाहिए। विशेष - कृत्तिका से आश्लेषा तक के ७ नक्षत्र पूर्वदिग्द्वार के, मघा से विशाखा तक के ७ नक्षत्र दक्षिणदिग्द्वार के, अनुराधा से श्रवण तक के ७ नक्षत्र पश्चिमदिग्द्वार के तथा धनिष्ठा से रेवती तक के ७ नक्षत्र उत्तरदिग्द्वार के माने गये हैं। अब यदि गृह नक्षत्र कृत्तिकादि आश्लेषा पर्यन्त में से कोई एक हो तो पूर्वद्वारीय घर का आरंभ करते समय चन्द्र उसके सम्मुख है ऐसा जानना। और यदि पूर्वद्वारीय मकान का आरंभ करते समय उस गृह का नक्षत्र अनुराधा से श्रवण तक के नक्षत्रों में से कोई हो चन्द्र उस घर के पीछे समझना। इस प्रकार घर के सम्मुख एवं पीछे चन्द्र की स्थिति में घर का आरंभ नहीं करना चाहिए। यदि वाम या दक्षिण पार्श्व में गृह नक्षत्र आवे तो चन्द्रमा को वाम या दक्षिण मानना चाहिए और ऐसी स्थिति में गृह का श्रीगणेश शुभदायी होता है। ___ उपरिलिखित को भली प्रकार समझने के लिए चार भिन्न-भिन्न दिग्द्वारीय भवनों के मानचित्र दिये जा - विभिन्न दिग्द्वारीय भवनों के मानचित्रानुसार चन्द्रस्थिति - पूर्वद्वारीय भवन दक्षिणद्वारीय भवन पश्चिमद्वारीय भवन उत्तरद्वारीय भवन अशुभ शुभ अशुभ द.उ. शुभ श्रवण श्रवण श्रवण श्रवण मान लो कि भवन का गणितागत नक्षत्र श्रवण है। यह नक्षत्र पश्चिम दिग्द्वारीय है अतः १ भवनारंभ के लिए चन्द्रमा पृष्ठस्थ २ भवनारंभ के लिये चन्द्रमा वामस्थ ३ भवन निर्माणार्थ चन्द्रमा सम्मुख और ४ भवनारंभ के लिए चन्द्रमा दक्षिणस्थ अत: घर का नक्षत्र श्रवण हो तो पूर्व या पश्चिम दिशा के अतिरिक्त दिशाओं में गृह प्रवेशद्वार होना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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