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________________ १८० ] [ मुहूर्तराज यहाँ सोलह प्रकार के बतलाए भवनों में द्वयक्षर नाम के ८ त्र्यक्षर नाम के ७ तथा चतुरक्षर नाम का १ भवन है। भवनों के ये नाम अथवा २ अक्षरों तीन अक्षरों एवं चार अक्षरों का होना ध्रुवांकों पर निर्भर है, अत: घर के ध्रुवांक साधन के सम्बन्ध में मुहूर्त चिन्तामणिकार - (वा.स. श्लो. ८) दिक्षु पूर्वादितः शाला धुवाः भूद्रौं कृताः गजाः शाला ध्रुवांक संयोगः सैको वेश्म धुवादिकम् ॥ अर्थ - पूर्वादि दिशाओं के ये शाला (अलिन्द, ओशरी) के ध्रुव हैं यथा पूर्वालिन्द का १ दक्षिणालिन्द के २ पश्चिमालिन्द ४ और उत्तरालिन्द के ८ जिस भवन में जितने अलिन्द जिस २ दिशा में बनवाने हों उन २ दिशा के शाला ध्रुवांकों का योग करके उस योग में १ मिलाने पर उस क्रम का भवन (ध्रुवधन्यादि) बनेगा। इस प्रकार ध्रुवांक ज्ञात करने के बाद भवन नामों की त्र्यक्षरालकता द्वयक्षरालकता एवं चतुरक्षरालकता के विषय में भी मुहूर्त चिन्तामणिकार - (वा.प्र. श्लो. ९ वें में) तिथ्यर्काष्टाष्टि गोरुद्रशने नामाक्षरत्रयम् । भूद्वयब्धीष्वङ्गदिग्वह्निविश्वेषु द्वौ नगाब्धमः ॥ ___ अर्थात् - यदि शालाध्रुवांक १५, १२, ८, १६, ९, ११ और १४ हो तो भवन के नाम को तीन अक्षरों वाला १, २, ४, ५, ६, १०, ३ और १३ यदि शाला ध्रुवांक योग हो तो भवन को दो अक्षरों के नाम वाला और यदि शाला ध्रुवांक की संख्या ७ हो तो उस भवन को चार अक्षरों के नाम वाला समझना चाहिए। अब भवन के उपयोग में लाने योग्य आयादिकों का फल कथन इस प्रकार हैआयफल - (वसिष्ठ) "विषमायः शुभायैव समायः शोकदुःखदः" ____ अर्थात् - ध्वज, हरि, वृष और हस्ती ये विषमसंख्याक आय शुभद है एवं इनके अतिरिक्त धूम, श्वान, खर (गधा) और काक (कौआ) ये समसंख्यक आय शोक एवं दु:खदाता समझे गए हैं। वारफल सूर्यारवारराश्यंशाः सदा वह्निभयप्रदाः । शेषग्रहाणां वारांशाः कर्तुमिष्टार्थ साधकाः ॥ अर्थात्- रवि एवं मंगलवार एवं इनकी राशियाँ एवं अंश गृहनिर्माण में हेय हैं क्योंकि ये अग्निभयप्रद हैं। शेष ग्रहों के वारांश इष्टसाधक हैं। धनऋणफल "धनाधिकं गृहं वृद्धौ निर्धनाय ऋणाधिकम्" अर्थात्- धनांक संख्या ऋणांक से अधिक हो तो वह भवन वृद्धिकारक किन्तु यदि ऋणांक धनांक से अधिक हो तो वह भवन निर्धनत्वकारी होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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