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________________ मुहूर्तराज ] एवं भास्कर भी - "गुर्वक्षरैः खेन्दुमितैरसुः " अर्थात् - २० लघु अक्षरों या १० गुरु अक्षरों के उच्चारण में जितना समय लगता है उतने समय को प्राण कहते हैं। दुः शकुन का उपचार - ( वसन्तराज ) " जाते विरुद्धे शकुनेऽध्वनीनो व्यावृत्य कृत्वा करपादशौचम् । आचम्य च क्षीरतरोरधस्तात् तिष्ठेत् प्रपश्येच्छकुनान्तराणि ॥ " अर्थात् - विरुद्ध शकुन के होने पर यात्री लौटकर हाथों पैरों को धोकर कुल्ला करके क्षीरतरु ( जिन वृक्षों के पत्रादि में दूध निकले) के नीचे बैठे और अन्य शुभशकुन की प्रतीक्षा करे । श्रीपति के मत से आद्यै विरुद्धे शकुने प्रतीक्ष्य प्रणान् नृपः पञ्च च षट् प्रयायात् । अष्टौ द्वितीये द्विगुणास्तृतीये व्यावृत्य नूनं गृहमभ्युपेयात् ॥ अर्थात् - प्रथम अपशकुन होने पर यात्रार्थी ५, ६ अथवा ८ प्राणों तक रुककर फिर आगे बढ़े फिर भी दूसरे अपशकुन पर १०, १२ अथवा सोलह प्राणपर्यन्त रुक कर फिर चले किन्तु यदि फिर भी अपशकुन हो जाए तो निश्चितरूपेण लौटकर स्वगृह आ जाए । यात्रानिवृत्ति पर गृहप्रवेश मुहूर्त - (मु.चि.या. प्र. श्लो. १०९ वाँ ) [ १५३ यात्रानिवृत्तौ शुभदं प्रवेशनम्, मृदुधुवैः क्षिप्रचरैः पुनर्गमः द्विशेऽनले दारुणभे तथोप्रभे स्त्रीगेह पुत्रात्मविनाशनं क्रमात् ॥ अन्वय - यात्रानिवृत्तौ मृदुधुवै: ( चित्रानुराधा मृगरेवतीषु मृदुषु रोहिण्युत्तरात्रयध्रुव संज्ञेषु नक्षत्रेषु) प्रवेशनम् (सुपूर्वप्रवेश:) शुभदं क्षिप्रचरैः (अश्विनीपुष्य हस्ताभितत्क्षिप्रैः श्रवणधनिष्ठाशततारकापुनर्वसुस्वाती चरैः) प्रवेशे पुनर्गमः पुनर्यात्रा स्यात्। अथ द्वीशे (विशाखायाम्) अनले (कृत्तिकायाम्) दारुणमे (मूलज्येष्ठार्द्राश्लेषासु) तथोग्रमे (पुर्वात्रयभरणीमधासु) प्रवेशे क्रमतः प्रवेशकर्तुः स्त्रीगेहपुत्रात्मविनाशः स्यात्। अर्थ - यात्रानिवृत्ति पर जो गृहप्रवेश किया जाता है उस प्रवेश को सुपूर्व प्रवेश कहते हैं उसी सुपूर्वप्रवेश के विषय में कहा जाता है कि मृदुनक्षत्रों (चित्रा, अनुराधा, मृग और रेवती) एवं ध्रुवसंज्ञक नक्षत्रों (उत्तरा त्रय और रोहिणी) में सुपूर्वप्रवेश शुभद है । क्षिप्रसंज्ञक नक्षत्रों (अश्विनी पुष्प, हस्त और अभिजित् ) तथा चरसंज्ञक नक्षत्रों में (श्रवण, धनिष्ठा, शततारका, पुनर्वसु और स्वाती) प्रवेश करने पर पुनः शीघ्रमेव यात्रा करनी पड़ती है। अतः ये क्षिप्रचरसंज्ञक नक्षत्र यात्रार्थ मध्यमफलद है। किन्तु यदि विशाखा में प्रवेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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