SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५० ] [ मुहूर्तराज औषध सेवन अश्वादियान पर सवारी, विवाह, शयन, भोजन, विद्यारंभ और बीज बुवाई इन सातों में छींक का होना शुभफलद होता है। वसन्तराज मत से छींक के आठ प्रकार हैं और उनके भिन्न-भिन्न फल है यथा "निषिद्धमग्रेऽक्षिणि दक्षिणे च धनव्ययं दक्षिणकर्णदेशे। . तत्पृष्ठभागे कुरुतेऽरिवृद्धि क्षुतं प्रकामं शुभमादधाति ॥ भोगाय वामश्रवणे स्वपृष्ठे कर्णे च वामे कथितं जयाय । सर्वार्थलाभाय चा वामनेत्रे जातं क्षुतं स्यात् क्रमोतऽष्टधेवम् ॥ अर्थ - छींक का सामने होना अशुभ है, दाहिनी आँख पर धनव्यय कराती है। दहिने कान के पास छींक होने से शत्रुवृद्धि और दाहिने कान के पीछे छींक का होना शुभ है। बाएं कान के पास छींक हो तो वह भोगादि सुख देती है पीठ पीछे और बाएँ कान के पीछे जय देती है। बाईं आँख के पास छींक का होना सर्वार्थसिद्धिसूचक है। कतिपय अन्य शकुनों के विषय में - (मु.चि.या.प्र. श्लो. १०४ वाँ) गोधाजाहकसूकराहिशशकानां कीर्तनं शोभनम, नो शब्दो न विलोकनं च कपि ऋक्षाणामतो व्यत्ययः । नद्युत्तारभयप्रवेशसमये नष्टार्थ संवीक्षणे, व्यत्यस्ताः शकुनाः नृपेक्षणविधौ यात्रोदिताः शोभना ॥ अन्वय - गोधा (गोह) जाहकः (शरीरसंकोत्री जन्तुविशेष) सूकर: अहिः शशक: एतेषां कीर्तनं नामोच्चारणं यात्राप्रयाण समये शोभनम् परन्तु एतेषां शब्द: विलोकनं च न शोभनम्। परन्तु कपिकंक्षाणाम् कीर्तनम् अशोभनम् शब्दविलोकने तु शुभे। नद्युत्तारभय प्रवेशसमरे (नदीपारकरणपलायनगृह प्रवेश सङग्रामेषु) नष्टार्थ संवीक्षणे (नष्टवस्तुगवेषणे) आदिषु यात्रायां क्रियमाणायां प्रागुक्ताः शुभाः शकुनाः “विप्राश्वेम” इत्यादयः अशुभाः, अशुभाश्च “वन्ध्याचर्म” इत्यादयः शकुनाः शुभाः (ज्ञेया:) नृपेक्षणविधौ (राजदर्शनार्थ प्रयाणे) तु यात्रोक्ता: शुभा शकुनाः शुभा: अशुभाश्च अशुभाः एव। अर्थ - गोह, शरीरसंकोची जन्तु, सूअर, सर्प और खरगोश इनका नाम अपने मुख से लेना अथवा अन्य व्यक्ति के द्वारा उच्चारित इनके नाम को सुनना अच्छा है लेकिन इनकी बोली और इनका दर्शन शुभ नहीं है किन्तु बन्दर और रीछों का नाम लेना या सुनना अशुभ है और इनको देखना एवं इनके शब्द को सुनना शुभद है। ___नदी आदि को पार करते समय, भय से पलायन करते समय, गृह प्रवेश एवं युद्धयात्रा में पूर्वोक्ति शुभशकुन अशुभफलद तथा अशुभशकुन शुभद् है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy